चौरासी कोस  यात्रा में दिखती है भक्तों की पवित्रता
चौरासी कोस यात्रा में दिखती है भक्तों की पवित्रता
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हमारे इस भारत वर्ष में धर्म और संस्कृति को काफी महत्वा दी जाती है. और इसी धर्म कर्म के कारण आज हमारा जीवन सम्पन्नता और शांति के साथ व्यतीत हो रहा है , धर्म-कर्म की राह को अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा , सत्य ,अहिंसा और प्रेम से अपने जीवन उज्जवल बनाता है. इसी के माध्यम से उसके जीवन की पवित्रता की पुष्टि होती है . 

हिंदुओं के प्रत्येक तीर्थ स्थल के आस-पास चौरासी और पंच कोस की परिक्रमा का आयोजन किए जाने का प्रचलन है। प्रत्येक तीर्थ क्षेत्र में इस आयोजन का अलग-अलग महत्व और परंपरा है।

आप जानें कब होती है यह यात्रा - 

ज्यादातर  चैत्र, बैसाख मास में ही होती है. कुछ विद्वान मानते हैं कि परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। 

जान सकते है की क्यों करते हैं यह यात्रा - 

माना जाता है कि 84 कोस की यात्रा 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। हमारा शरीर भी चौरासी अंगुल की माप का है। 84 कोस की यात्रा के धार्मिक महत्व के अलावा इसका सामाजिक महत्व भी है। 

कहां-कहां होती परिक्रमा-

चौरासी कोसी परिक्रमा पूरी तरह से संतों और भक्तों द्वारा संचालित धार्मिक व परम्परागत है। इस परिक्रमा को किसी विशेष समय और स्थान पर लोग करते हैं जैसे- ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन, अयोध्या में सरयू, चित्रकूट में कामदगिरि (कामता नाथ ) उज्जैन में भी चौरासी महादेव की यात्रा का आयोजन किया जाता है।

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