और कितने कोफिन भारत के गांव में भेजेगा पाकिस्तान?
और कितने कोफिन भारत के गांव में भेजेगा पाकिस्तान?
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भारत भूमि जहां पर कण-कण में बलिदानियों का वास है। यहां आज भी बड़े पैमाने पर वीर हंसते - हंसते खुद को भारत माता के लिए कुर्बान कर देते हैं यह बात और है कि अब सियासी गलियारों में भारत माता के अलग - अलग मायने निकाले जा रहे हैं। मगर फिर भी इस देश की सीमा पर डंटे जवान युद्ध क्षेत्र में अपने जोश और गोलीबारी से दुश्मन के दांत खट्टे कर ही देेते हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने के बाद से ही लोग परेशान हो उठे। यहां पर काफी अस्थिर हालात पैदा हो गए। अब तो आए दिन आतंकी हमला होने लगता है।

कभी सेना के काफिले पर तो कभी सेना के ठिकाने पर। इतना ही नहीं सर्चिंग के दौरान भी आतंकी घुसपैठ का सामना कई बार सैनिक करते हैं। 4 किलो की राईफल उठाए हुए साथ में काफी सारा सामान लिए जवान कई बार पहाड़ उतरते हैं और चढ़ते हैं। कई बार तो इन जवानों को कई विषम परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है। मगर इसके बाद भी ये जवान अपनी जान की बाजी लगाकर मैदान में डंटे रहते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर सीमा पार से गोलीबारी होने और घुसपैठ होने की बात सामने आती रही है कितने ही जवान सीमाओं पर शहीद हो गए मगर इस मसले का स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका है।

दोनों ओर के नेताओं द्वारा कभी तो सैन्य कार्रवाई की बात की जाती है तो कभी कहा जाता है कि वार्ता ही एक मात्र समाधान है मगर भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू - कश्मीर समेत अन्य विवादों के लिए पहले आतंकी कार्रवाई रोकने की बात की जाती। भारत आतंकवाद को प्रमुखता से लेकर इस पर चर्चा करने की बात करता है तो पाकिस्तान कश्मीर मसले का समाधान चाहता है मगर दोनों के विवादों में विषय बेनतीजा रह जाता है।

ऐसे में आतंक का प्रभाव बढ़ता ही जाता है। कश्मीर में आतंक का जहर बंदूकों और अलगाव के स्वर के तौर पर उगला जा रहा है। हालात ये हैं कि कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाकर भाजपा अपनी नीतियों से समझौता करने के लिए मजबूर नज़र आ रही है। उल्लेखनीय है कि पीडीपी का झुकाव अलगाववादियों की ओर है। अलगाववादी कश्मीर मसले के समाधान के लिए पाकिस्तान से अपने लाभ की सशर्त चर्चा के हिमायती रहे हैं।

अर्थात् इस तरह की वार्ता में अलगाववादी अपना और पाकिस्तान का हित साधना चाहते हैं। ऐसे में कश्मीर को भारत के ही भाग के तौर पर बनाए रखने में मुश्किल होती है। घाटी में चाहे जब जुमे की नमाज़ के बाद पाकिस्तान और आतंकी संगठन आईएसआईएस के ध्वज लहरा दिए जाते हैं एक तरह से जम्मू - काश्मीर को भारत से अलग किए जाने की खुली बात की जाती है। इतना ही नहीं सैनिकों की केजुलिटी सर्वाधिक रूप से जम्मू - कश्मीर में ही होती है।

भारतीय नेता जब विपक्ष में रहते हैं तो भारत-पाकिस्तान के संबंधों को लेकर बड़बोलापन दिखाते हैं मगर जब सत्ता में आते हैं तो उन्हें कई मसलों पर समझौता करना होता हैं हालांकि वर्तमान केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के साथ आतंकवाद को विराम दिए बिना किसी तरह की चर्चा न करने की बात कर अच्छी पहल की है।

मगर फिर भी केदं सरकार विशेषकर भाजपा का धारा 370 का मसला अभी भी कमजोर पड़ता नज़र आ रहा है। पंपोर में सैनिकों की शहादत सरकार से अपील कर रही है कि इस मसले पर ठोस हल निकाला जाना जरूरी है। पाकिस्तान वार्ता में भी अपना ही अड़ियल रवैया अपना रहा है। इसे लेकर उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाना होगा।

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