मानसून में देरी के बाद भी संकटमोचक बनी नदी जोड़ो योजना
मानसून में देरी के बाद भी संकटमोचक बनी नदी जोड़ो योजना
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जून माह के मध्य दिनों में पहुंचते ही आसमान में बादल मंडराने लगते हैं, ऐसे में मानसून की आहट सभी को सुखद अनुभव देती है। हालांकि मानसून के प्रारंभ के पूर्व ही मई और जून माह के दरमियान कई स्थानों पर जलस्त्रोत सूखने लगते हैं और लोगों को जल की आपूर्ति के लिए काफी मशक्कत करना पड़ती है लेकिन कई स्थानों पर ऐसे प्रयास हुए हैं जिसके कारण लोग पानी की सप्लाय अच्छी तरह से होने के कारण परेशान नहीं हो रहे हैं। जबकि इन क्षेत्रोें में बनाए गए बांध सूख चुके हैं। इन बांधों के कैचमेंट एरिया में तक पानी नहीं है और महज 10 दिनों का पानी ही सप्लाय के लिए बचा है। ऐसे में भी नदी जल से लोगों को आस है।

मानसून को लेकर लंबी खेंच की संभावना जताई जा चुकी है। जिसके कारण लोगों को नदी के पानी को ट्रीटमेंट कर सप्लाय करना एक बेहतर विकल्प नज़र आता है। आखिर यह कैसे संभव हुआ कि बांध का पानी सूख गया जबकि नदी अभी भी लबालब है। दरअसल यह संभव हुआ है केंद्र सरकार के राष्ट्रीय नदी जोड़ो अभियान के माध्यम से। मध्यप्रदेश का धार्मिक पर्यटन नगर उज्जैन। जहां सिंहस्थ 2016 का सफल आयोजन हुआ। इस आयोजन के ही साथ पेयजल के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता रही।

वह नदी जो गर्मी का मौसम प्रारंभ होते ही सूखने लगी है। वह अब लबालब भरी हुई है। प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के समन्वय से इस क्षेत्र में शिप्रा - नर्मदा लिंक योजना के प्रोजेक्ट पर काम हुआ तो शिप्रा नदी में नर्मदा नदी का जल प्रवाहित कर इसे बड़ी जलराशि से भर दिया गया। इस तरह की योजना से जहां सिंहस्थ 2016 मेें पर्याप्त जल की आपूर्ति संभव हो पाई वहीं मानसून के लेट होने पर बुवाई की तैयारी कर रहे किसानों के चेहरों पर अधिक चिंता नज़र नहीं आ रही है। पेयजल के लिए भी लोगों को परेशान नहीं होना पड़ रहा है।

इस तरह की योजना से राज्य में उज्जैनी जैसा एक पर्यटन स्थल भी विकसित किया जा सका है। यही नहीं धार्मिक पर्यटन नगर उज्जैन के घाटों पर भी शिप्रा का पानी पर्याप्त रहने के कारण अलग रौनक है। इस तरह की योजना देश की अन्य नदियों को लेकर भी अपनाई जाना है। मगर यह काम कुछ धीमा है।

यदि इस तरह की पहल ऐसी नदियों को लेकर होती है जो बारिश में बाढ़ से उफनती हैं और लोगों का जीवन संकट में पड़ जाता है तो इन नदियों को जोड़कर बाढ़ की भयावहता को कम किया जा सकता है फिर वर्ष भर इन नदियों में पर्याप्त जल की मौजूदगी रहने से सिंचाई, पेयजल के लिए यह काफी लाभदायक हो सकता है।

'लव गडकरी'

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