तुम होते तो ऐसा होता...तुम होते तो वैसा होता
तुम होते तो ऐसा होता...तुम होते तो वैसा होता
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जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्दालय, जिसके छात्र से लेकर प्रोफेसर तक कभी माओवादियों के साथ रिश्ता रखने तो कभी देश के उल्ट जाने के लिए हमेशा चर्चा में रहे है। आज उसी यूनिवर्सिटी के नाम पर देश के लोग से लेकर मीडिया तक देशद्रोह व देशप्रेम के दो गुटों में बंट गया है। सबका ध्यान या तो कॉलेज के कैंपस में है या फिर उमर खालिद औऱ अनिर्बान भट्टाचार्य से हो रही पूछताछ पर कि वो कब सिगरेट मांग रहे, तो कब मोमोज औऱ बिरयानी और समय बचा तो संसद में चल रहे घमासान पर।

जाहिर है टीआरपी वहीं है मेरे यार....बाकी मुद्दे तो तब ढुंढेंगे जब ये सब ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। स्याही कांड और असहिष्णुता के बाद जिस मसाले की तलाश थी, आखिरकार वो मिल ही गया। लेकिन इस बीच देश के दो राज्यों में जो घटना हुई उसे जानकर आपका भी सिर शर्म से झुक जाएगा। उमर औऱ अनिर्बान के लिए देश कड़ी सजा की मांग कर रहा है लेकिन ये भी कोई बताए कि उन लोगों के साथ क्या किया जाए जिन्होने आऱक्षण (खुद को राष्ट्रीय लंगड़े-लुल्हे घोषित किए जाने के लिए उतावला होना) के नाम पर देश की 20 हजार करोड़ की संपत्ति तो बर्बाद की ही।

साथ ही बहूुमूल्य मां-बहनों की इज्जत के साथ भी खेला। आती-जाती कारों में सिर्फ लूटपाट ही नहीं किया बल्कि कार में से महिलाओं को खींचकर बाहर निकालकर दुष्कर्म को भी अंजाम दिया। बीफ मसले पर हरियाणा सरकार ने जमकर कोहराम मचाया। ऐसे में इस पर कौन सी कार्रवाई करेगी खट्टर सरकार। सरकारी एजेंसियां तो इसे मात्र एक अफवाह करार देकर अपना मुंह पोछ ले रही है। लेकिन एऩएच-1 पर मुरथल हाइवे पर 30 हुड़दंगियों ने जो 10 महिलाओं के साथ किया उससे कैसे अपना दामन साफ करेंगे।

दूसरी घटना उतर प्रदेश की है, जहां फिर से एक विद्दार्थी को प्रताड़ना से बेहतर अपनी जान देना लगा। गुरुवार को एक छात्र ने कॉलेज प्रशासन से तंग आकर अपनी जान दे दी। वो इस कदर हताश था कि अपने परिवार के बारे में भी न सोच पाया। इसे किसी मीडिया ने कवर नहीं किया। जान ले कि वो सवर्ण जाति का था। लकवेश मिश्रा नाम के इस छात्र ने सारा दोष एचओडी के मत्थे मढ़ा है। रोहित वेमुला की हत्या तो अब भी देश के सभी अखबारों, टीवी चैनलों, वेबपोर्टल पर जिंदा है, पर देश के उन हजारों बच्चों का क्या जो आज भी कॉलेज प्रशासन से तो, कभी मार्क्स को लेकर आत्म हत्या कर रहे है।

क्या मीडिया भी कवरेज से पहले लाश से यही पूछेगी कि कौन सी जाति से हो बबुआ। सवर्ण हो तो हमरे मतलब का नाहीं और दलित हो तो बात करो, तुम्हें घऱ-घर तक पहुंचाते है। सदन में भी तुम्हरा ही राज चलेगा। लोग तुम्हारे ही लिए अपना सिर काटेंगे, तो कोई तयोरियां चढ़ाकर सवालों की झड़ी लगाएगा और आम जनता के पैसों से चल रहे सदन का समय बर्बाद करेगा। पर तुमका कुछो नाहीं मिलिहे। तुम तो भूत बने देखत रहो। केजी क्लास के बच्चे को भी सिखाया जाता है कि एक इंसान जब बोले तो दूसरा सुने फिर वो अपना पक्ष रखे, लेकिन इ सफेद कपड़े में बैठे भूत कम जनावर को इ समझ में नही आता। सब एक ही साथ भौंकते है। अब सुने कौन औऱ बोले कौन।

'रीटा राय'

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