बीफ की आग पर सिक रही राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां
बीफ की आग पर सिक रही राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां
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भारत देश जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां हर 50 किलोमीटर पर खान - पान, रहन - सहन, आचार - विचार और बोलियां बदल जाती हैं मगर फिर भी सभी सौहार्द के साथ मिलजुलकर रहते हैं। ईद मिलादुन्नबी पर अमीना की रसोई में पकने वाली सिवईया से शीला का मुंह मीठा होता है तो फिरोज दीपावली पर मठरियों का स्वाद चखकर खुश हो जाता है लेकिन ऐसे देश में इन दिनों एक हवा ज़ोरों पर चल रही है। आखिर खाने के लिए बीफ का सेवन किया जाए या नहीं बीफ का सेवन किया जाए तो फिर पोर्क का सेवन क्यों न किया जाए।

ऐसे मसलों को तूल देकर जबरन देश की फिज़ा में गर्माहट लाई जा रही है। देश में वैमनस्य पैदा हो गया है। मगर विवादों को फिर भी हवा दी जा रही है। आग कुछ ठंडी होती नहीं कि फिर बीफ मामले का घी डालकर शोला भड़का दिया जाता है। राजनीतिक गर्मी में बीफ ठीक से पके नहीं तो फिर किसी कलाकार को मुसलमान होने के नाम पर पाकिस्तानी एजेंट कह दिया जाता है।

ऐसा कलाकार जो भूकंप और बाढ़ ग्रस्त हालात के समय चैरिटी शो में अपनी कला का प्रदर्शन करने निकला हो ऐसा कलाकार जिसने कई सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों में अभिनय कर अपनी भूमिका निभाई हो वह केवल मुसलमान होने के नाम पर पाकिस्तानी एजेंट ठहरा दिया जाता हो। आखिर यह किस तरह की राजनीति है। अचानक सहिष्णुता और असहिष्णुता के नाम पर राजनीति से देश की फिज़ा गर्म हो जाती है। 

सबसे आश्चर्यजन बात तो यह है कि पहले सरकार इन मामलों से खुद को अलग कर देती है मगर बीफ सेवन करने वालों को मारने - पीटने और उनका विरोध करने वाले नेता उन्हीं से संबंधित दलों के होते हैं। बावजूद इसके सरकार अपनी जिम्मेदारी से ही पल्ला झाड़ लेती है। दूसरी ओर खुद को मुस्लिमों का पैरोकार समझने वाले नेता आए दिन बीफ को लेकर बयानबाजी कर इस आग को और तूल देते हैं।

सबसे आश्चर्यजनक बात तो तब सामने आती है जब प्रमुख विपक्षी दल माना जाने वाला कांग्रेस ऐसी घटनाओं के बहुत समय बाद अचानक जागता है और असहिष्णुता के खिलाफ महात्मा गांधी की तरह पैदल मार्च निकालता है। हालांकि इस मसले पर कांग्रेस द्वारा निकाले गए मार्च का रूख समझ में आता है। यह विरोध का बेहद शांतिपूर्ण तरीका है लेकिन बीफ मसलों के सामने आने के इतने दिनों बाद मार्च निकालने से कांग्रेस की राजनीति भी साफतौर पर झलककर सामने आ रही है।

आखिर नेता इस तरह के मसलों को तूल देकर खुद ही देश में असहिष्णुता का माहौल बना रहे हैं आखिर आम आदमी तो पहले से ही परेशान है कि वह 200 रूपए प्रतिकिलो के दाम पर मिलने वाली दाल का सेवन करें या फिर खाली पेट पानी पीकर भगवान का भजनकर अपनी रात जैसे - तैसे गुजारें। बीफ और मीट से आम आदमी का भी कोई सरोकार नहीं दिखता।

जिन्हें इनका सेवन करना है वे तो बाकायदा इनका सेवन कर रहे हैं अलबत्ता शाम होते ही देशभर के मयखाने खाने - पीने के शौकीनों से आबाद हो रहे हैं, नतीजतन लूट, चोरी और अन्य वारदातें भी सामने आ रही हैं। 

'लव गडकरी'

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