नईदिल्ली। भारत में अमीरी और गरीबी के बीच काफी गहरी खाई है। इस मामले में फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थोमा पिकेती और लुका साॅसेल द्वारा रिसर्च पेपर में बताया गया कि जो स्थिति है वह 1922 से सबसे अधिक स्थिति है। इसकी तुलना 1922 से की जाती है दरअसल 1922 में आयकर कानून की कल्पना की गई थी। उन्होंने एक रिसर्च पेपर अंग्रेजी राज से अरबपति राज शीर्षक से तैयार किया। जिसमें उन्होंने यह तथ्य उद्घाटित किया कि 1930 के दशक के आखिर में एक प्रतिशत जनसंख्या कुल आमदनी का 21 प्रतिशत से कम भाग पर आधिपत्य था।
वर्ष 1980 आते आते तक यह लगभग 6 प्रतिशत तक हो गया था। मिली जानकारी के अनुसार भारत की प्रतिव्यक्ति आय में बढ़ोतरी न्यूनतम स्तर पर थी। भारतीय अर्थव्यवस्था की इस तरह की प्रकृति विश्व के विभिन्न देशों से मेल खा रही है। दोनों ही फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों द्वारा कहा गया कि भारत की आय में अंतर का आंकड़ा बड़ी मुश्किल से ही कलेक्ट किया जा सकता है।
इस रिसर्च पेपर में यह दर्शाया गया कि आखिर किस तरह से शनैः शनैः देश में आर्थिक बदलाव आए। मगर अभी भी गरीबी की मौजूदगी है। मगर अमीर और गरीब के बीच एक अंतर है। लिखा गया कि देश के 1 प्रतिशत लोग इतना कमा रहे हैं जिनता 22 प्रतिशत लोग कमाते हैं।
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