मनरेगा पर पड़ा आर्थिक दबाव
मनरेगा पर पड़ा आर्थिक दबाव
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नई दिल्ली : संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में प्रारंभ की गई मनरेगा योजना पर आर्थिक संकट के बादल मंडराने लगे हैं। दरअसल राजग के कार्यकाल में न तो इस योजना को बंद किया गया है और न ही इस योजना पर कथिततौर पर नया पैसा बढ़ाया गया है। हालात ये हैं कि कुछ क्षेत्रों में वर्षभर के लिए आवंटित राशि समाप्त कर दी गई है।

गांवों में रोजगार की चाह रखने वाले लोग बढ़ गए हैं। अब यह बात सामने आई है कि योजना को आगे बढ़ाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से 10 हजार करोड़ रूपए अतिरिक्त मांगे गए हैं। यदि चाही गई राशि नहीं मिल पाई तो मनरेगा पर संकट गहरा सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मनरेगा में कार्य की मांग में बढ़ोतरी की गई है।

दरअसल कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर सूखे के हालात थे। हालांकि इस बार बारिश तेज रही लेकिन सूखे की परिस्थितियों में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए कार्य दिवसों की संख्या 150 तक कर दी गई थी। मनरेगा के प्रावधान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाता रहा है। गौरतलब है कि मनरेगा के तहत वर्ष 2016 से वर्ष 2017 में 43499 करोड़ रूपए की राशि का आवंटन किया गया था।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि 36134 करोड़ रूपए राज्यों को जारी किए गए। अब इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए और धन की आवश्यकता है। सूखे के हालात में ग्रामीणों के पास काम नहीं था और उन्हें गांव में होने वाले निर्माण कार्य व खुदाई कार्य के लिए लगाया गया था। ऐसे में कई स्थानों पर मजबूर बढ़ गए और उनके लिए कार्य दिवसों की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 तक बढ़ गई थी।

मनरेगा के तहत आवश्यक व्यक्ति 100 दिन के रोजगार की मांग कर सकता है। गौरतलब है कि इस योजना को लेकर कांग्रेस पहले भी केंद्र सरकार से राशियों के आवंटन की बात कर चुकी है। कांग्रेस ने मांग की थी कि कई क्षेत्रों में मनरेगा का कार्य ठीक तरह से नहीं चल रहा है इसे देखा जाना चाहिए। साथ ही कांग्रेस आरोप लगाती रही है कि मनरेगा को दबाया जा रहा है। इसे सरकार ने खारिज कर दिया।

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