महाभारत एवं रामायण जैसे ग्रंथों को जब हम पढ़ते हैं, तो हमारा अधिक ध्यान नायकों एवं खलनायकों पर होता है। हम उन पात्रों पर कभी ध्यान नहीं देते हैं, जिनकी भूमिका इन दोनों खांचों में नहीं आती। ऐसा ही एक पात्र था रावण का बेटा इंद्रजीत यानी मेघनाद। इंद्रजीत था तो रावण की सेना में मगर वह बहुत ही शक्तिशाली, निपुण और वफादार था। उसके समक्ष कई शक्तिशाली देवता भी कमतर पड़ जाते थे। आइए जानते हैं इंद्रजीत की कहानी...
1- रावण का निपुण पुत्र:-
अहंकारी लोगों की भांति मेघनाद भी एक निपुण बेटा था। उस वक़्त रावण ने हर चीज़ जीत ली थी। रावण के डर से ग्रहों ने ऐसा वक़्त तैयार किया, जिससे रावण का बेटा शुभ समय पर पैदा हुआ। इसकी वजह से रावण के बेटे को अच्छा जीवन मिला।
2-ऐसा बच्चा जिसके रोने से आसमान में गड़गड़ाहट सुनाई दी:-
रावण के बेटे को जन्म रावण की पत्नी मंदोदरी ने दिया था। तथा जब उसका जन्म हुआ तो उसकी चीखें गड़गड़ाहट की भांति सुनाई दीं। इसलिए उसका नाम मेघनाद रखा गया।
3- सबसे शक्तिशाली योद्धा बनने की तैयारी:-
मेघनाद को शुक्र देव ने शिक्षा दी थी। शुक्र असुरों के गुरु थे। उनके कई प्रख्यात शिष्य भी थे। उनके कुछ प्रसिद्ध शिष्य थे जैसे प्रह्लाद, बाली तथा भीष्म। शुक्र ने उन्हें युद्ध के सभी रहस्य सिखाए। मेघनाद ने उनसे सभी हथियारों तथा रणनीतियों के बारे में सीखा। इसमें उन्होंने महारत हासिल की। युद्ध कलाओं के अतिरिक्त मेघनाद ने जादू-टोने की कलाएं भी सीखीं जो उस वक़्त बेहद ही कम व्यक्तियों को आती थी।
4- इंद्र को हराकर स्वर्ग पर विजय:-
देव एवं असुर हमेशा से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते थे। इनमें से एक युद्ध में रावण एवं मेघनाद ने भी हिस्सा लिया था। युद्ध के चलते रावण हार गया तथा बेहोश हो गया। मेघनाद ने गुस्से में आकर इंद्र से युद्ध किया। उसने इंद्र को पराजित कर दिया तथा उसे अपने रथ से बांधकर धरती पर ले गया। ब्रह्मा जी को डर था कि मेघनाद देवताओं के राजा इंद्र को मार सकता है। इसलिए, ब्रह्मा जी ने मेघनाद को वरदान के बदले इंद्र को रिहा करने के लिए कहा।
5- किसी भी युद्ध में पराजित न होने का वरदान:-
मेघनाद ने अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मा ने कहा कि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। इसलिए, ब्रह्मा ने उन्हें युद्ध में पराजित न होने का वरदान दिया। मेघनाद को वरदान प्राप्त हुआ कि उसे कभी कोई हरा नहीं पाएगा। मगर एक शर्त पर कि उसे युद्ध पर जाने से पहले एक यज्ञ करना होगा तथा अपनी आराध्य देवी की आराधना करनी होगी। इंद्र को हराने की वजह से ही ब्रह्मा जी ने मेघनाद का नाम इंद्रजीत रखा था।
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