दिवाली की मिठास में कड़वाहट घोलता नकली मावा
दिवाली की मिठास में कड़वाहट घोलता नकली मावा
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कोई भी त्यौहार बिना मिठाइयों के फीका ही रहता है.पर मिठाइयों की इस मिठास में कड़वाहट और बिमारियों का ज़हर घोल रहा है नकली मावा.व्यापारी कमाई के चक्कर में नकली मावा बेंचते हैं और अपनी दूकान की मिठाइयों में भी इसी नकली मावे का इस्तेमाल करके लोगों को बीमारियाँ बेंचते हैं.

दिवाली भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है और इस दिन मिठाइयों की मांग बहुत ज्यादा होती है,क्यूंकि मेहमानों को भी मिठाईयाँ उपहार में दी जाती हैं. चाहे मिठाई घर पर बने या मार्केट से लाई जाए,इन मिठाइयों का ज़रूरी हिस्सा होता है मावा.इसकी कीमत भी ज्यादा ही होती है. परन्तु दूकान पर बिकने वाला मावा अधिकतर मिलावट वाला होता है,यही नहीं बाज़ार की मिठाइयां भी अधिकतर मिलावट वाले मेवे से बनी होती है, इसलिए मिठाई घर की हो या बाहर की,एक तरह से हम नकली मावा ही खा रहे हैं. ऐसे में इन मिठाइयों को खाने से लोगों की तबियत बिगड़ जाती है.

दिवाली के समय कईं दुकानों पर नकली मावे की धर-पकड़ में छापा भी मारा जाता है,परन्तु दुकानदार कोई न कोई पतली गली से बच निकलते हैं. प्रतिवर्ष नकली मावे की मात्रा बढ़ रही है, ऐसे में दिवाली उत्साह का त्यौहार नहीं, बिमारी की भरमार बनती जा रही है.ज़रा सी कमाई के पीछे व्यापारी लोगों की जान से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते हैं. ऐसे लोगों के लिए जब तक कड़े कानून नहीं बनेंगे तब तक शायद ये अपनी करनी से बाज़ नहीं आएंगे.

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