संपूर्ण भारत में सालभर से विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का इंतजार कर रहे भगवान जगन्नाथ के देश-विदेश के लाखों भक्तों को मायूसी हाथ लगी है. कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में आयोजित होने वाली वार्षिक रथयात्रा का आयोजन इस साल नहीं होगा. महामारी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है. 23 जून से इस यात्रा की शुरुआत होनी थी. यह यात्रा दस दिन की होती है. यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से शुरू हो जाती है. इस दौरान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण शुरू हो जाता है. इस विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा की शुरुआत आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है. इस दौरान भगवान कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर 'श्री गुण्डिचा' मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस यात्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते हैं, जो कि लकड़ी के होते हैं. एक रथ बलरामजी के लिए लाल वहरे रंग का. एक रथ सुभद्राजी के लिए नीले और लाल रंग का. इसके अलावा तीसरा रथ भगवान जगन्नाथ के लिए लाल और पीले रंग का बनाया जाता है. रथों के निर्माण में हर साल नई लकड़ी का प्रयोग होता है.
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इसके अलावा रथयात्रा वाले तीनों रथों को मुख्य मंदिर के सामने खड़ा किया जाता है. भगवान जगन्नाथ का रथ शेष दो रथों के पीछे रहता है. उनके रथ को नंदीघोष कहा जाता है. रथयात्रा के दिन तीनों मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाने वाली प्रक्रिया पहंडी बिजे कहलाती है. यात्रा शुरू होने के दौरान जब मंदिर की आकृति के तीन रथ चलते हैं, तो चारों तरफ जयकारे, घंटा, शंख, मृदंग बजाते, भजन- कीर्तन करते लोगों का उत्साह देखते ही बनता है. भगवान जगन्नाथ जब मंदिर लौटते हैं तो उस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है.
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