घर जाने की चाह में भूले सारे दर्द, ऐसे हजारों किलोमीटर सफर तय कर रहे है मजदूर
घर जाने की चाह में भूले सारे दर्द, ऐसे हजारों किलोमीटर सफर तय कर रहे है मजदूर
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ग्वालियर: लॉकडाउन के चलते मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल पड़े है. इस बीच कई ऐसे मामले देखने को मिल रहे है जो हैरान परेशान कर देने वाले है. एक ऐसा ही मामले हाल ही में देखने को मिला है. जी हां, तीन दिन पहले बाइक ने टक्कर मार दी, पैर में घाव हो गया और खून बहने लगा. मुश्किल से मेडिकल स्टोर मिला तो वहां से ड्रेसिंग बैंडेज और दर्द निवारक दवा ली. बैंडेज बांधकर टपकते खून के साथ ही घर की ओर निकल पड़ा. दो माह से काम-धाम बंद है और खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में मौत भी आए तो दूसरे शहर में कौन अपना है. वैसे तो जीवन ईश्वर के हाथ है, लेकिन जो होना है वह अपनों के बीच हो जाए तो कोई गम नहीं रहेगा.  

दरअसल, यही सोचकर गांव के लोगों के साथ घर को निकला हूं. चोट के वजह से असहनीय दर्द होता है, लेकिन वह पेट की भूख और अपनों से दूर होने से कम ही है. यह पीड़ा है बागपत उप्र निवासी संजय की. वह गांव के लोगों के साथ बैतूल में गुड़ बनाने का काम करते थे. लॉकडाउन के वजह से वहीं फंसे थे. तीन दिन पहले ट्रैक्टर-ट्रॉली से 50 लोग निकले हैं. रविवार को सिकरौदा तिराहा, झांसी रोड हाइवे पर उनसे चर्चा की तो उनका दर्द जुबां पर आया और पूरी घटना बताई.

बता दें की एक ट्रॉली में 50 लोग सवार होकर निकले हैं. ट्रॉली में सामान भी भरा था. बैठने को जगह नहीं थी. सुरक्षित शारीरिक दूरी क्या है, इसकी वे परिभाषा जानना ही नहीं चाहते, क्योंकि मजबूर हैं. उन्हीं के गांव के इतने ही लोग दूसरी ट्रॉली में सवार थे. उन्हें रास्ते में एक टाइम का ही खाना मिला था. रविवार को सिकरौदा तिराहा पर जब सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें खाना दिया तो उन्हें काफी राहत मिली.

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