बेटी होने पर कोई फीस नहीं लेती हैं डॉक्टर शिप्रा धर, पूरे अस्पताल में बंटवाती हैं मिठाईयां
बेटी होने पर कोई फीस नहीं लेती हैं डॉक्टर शिप्रा धर, पूरे अस्पताल में बंटवाती हैं मिठाईयां
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''कर्म फुट गए जो लड़की हो गई...'' ये शब्द आप सभी ने एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार सुने होंगे। घर में अगर लड़की हो जाए तो लोग दुःखी मन से कहते हैं कि 'लड़की हुई है'। इस मौके पर कुछ लोग ताना कसने में भी पीछे नहीं रहते हैं। इस दौरान आपको कई प्रकार के ताने सुनने को मिल जाएंगे, जैसे- 'बड़ी होकर भाग गई तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे', 'अब इसकी शादी के लिए पैसे जोड़ो, दहेज़ लेकर जाएगी', 'एक और बोझ बढ़ गया घर में ऐसे ही खाने के लाले हैं'। इस तरह के हज़ारों ताने हैं जो आपको लड़की होने पर सुनने को मिलेंगे। वहीं अगर घर में लड़का होगा तो हर तरफ से वाहवाही मिलती है। लोग कहते हैं चिराग आ गया घर का नाम रोशन होगा। दुनिया में लड़कियों के जन्म से खुश होने वाले आपको बहुत कम लोग मिलेंगे लेकिन लड़कों के जन्म पर ख़ुशी मनाने वाले हज़ारों। लड़कियों के जन्म पर देशभर में हर दूसरा व्यक्ति परेशान हो जाता है। वैसे इन सभी के बीच एक सकारात्मक खबर है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं। यह खबर एक महिला डॉक्टर की है जिनका नाम शिप्रा धर है। आइए जानते हैं इनके बारे में।

कौन है शिप्रा धर- शिप्रा धर एक महिला डॉक्टर हैं जो वाराणसी में नर्सिंग होम चलाती हैं। उन्होने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से MBBS, MD की पढ़ाई की है। उन्होंने साल 2001 में MBBS की पढ़ाई पूरी की थी और उसके बाद शादी कर ली। शादी के बाद अब आज शिप्रा अपना खुद का नर्सिंग होम चलाती हैं। शिप्रा के पति भी एक डॉक्टर हैं और वह भी अपनी पत्नी के नर्सिंग होम में उनका सहयोग करते हैं। शिप्रा के पति का नाम डॉ एमके श्रीवास्तव है। दोनों अपने नर्सिंग होम में बेहतरीन काम करते हैं।

क्यों ख़ास हैं डॉक्टर शिप्रा धर- शिप्रा धर एक ऐसी महिला डॉक्टर हैं जो अपने नर्सिंग होम में जन्म लेने वाली लड़कियों के समय पर फीस नहीं लेती हैं। जी हाँ, अगर कोई गर्भवती महिला शिप्रा धर के यहाँ भर्ती होती है और वह लड़की को जन्म देती है तो शिप्रा फीस लेने से इंकार कर देती हैं। बेटी के जन्म के बाद शिप्रा खुद पूरे अस्पताल में मिठाई बँटवाती हैं और खुशियां मनाती हैं। शिप्रा आज के समय में हो रही भ्रूण हत्या को रोकने और लड़कियों के जन्म को बढ़ावा देने के लिए इस बेहतरीन काम को कर रहीं हैं। यह शिप्रा की एक छोटी सी कोशिश है लोगों को समझाने की कि लडकियां बोझ नहीं होती हैं। हम सभी जानते हैं कि लड़की का जन्म होते ही परिवार में मायूसी का आलम हो जाता है लेकिन शिप्रा ऐसा कुछ नहीं मानती। वह बड़े ही उत्साह और खुशियों के साथ लड़की की पैदाइश पर जश्न मनाती हैं। जब शिप्रा के अस्पताल में लड़की का जन्म होता है तो वह उस परिवार से न तो फीस लेती हैं और ना ही बेड का कोई चार्ज लेती हैं। फिर वह डिलवरी नार्मल हो या ऑपरेशन से शिप्रा को कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तक शिप्रा के अस्पताल में 100 लड़कियों ने जन्म लिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हुए हैं शिप्रा धर से प्रभावित- शिप्रा के इस काम से ना केवल आम लोग बल्कि खुद देश के प्रधानमंत्री तक प्रभावित हुए हैं। जी दरअसल कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री वाराणसी गए हुए थे। इस दौरान जब उन्हें शिप्रा धर के काम के बारे में पता चला तो वह इससे काफी खुश हुए। उसके बाद वह उनसे मिले और उनके इस काम की तारीफ़ की। इसी के साथ उन्होंने कहा था- 'सभी डॉक्टरों को एक दिन फ्री में डिलिवरी करवानी चाहिए।'

अनाज बैंक भी चलाती हैं डॉक्टर शिप्रा धर- शिप्रा केवल एक ही नेक काम नहीं करती बल्कि वह गरीब बच्चों के लिए अनाज बैंक भी चलाती हैं। वह उन बच्चों और उनके परिवार वालों को अनाज देती हैं जो कुपोषण का शिकार है या बहुत गरीब हैं। हर महीने की 1 तारीख को उनके अनाज बैंक से उन लोगों को अनाज दिया जाता है जिनके यहाँ खाने के लिए कुछ नहीं होता। इस अनाज के अंदर 10 किलो गेहूं और 5 किलो चावल दिए जाते हैं। वहीं अगर कभी कोई पर्व जैसे- होली, राखी, दिवाली आता है तो सभी परिवारों को मिठाइयां और कपड़े भी दिए जाते हैं। यह एक ऐसी खूबसूरत पहल है जो अगर समाज का हर दूसरा व्यक्ति करने लगे तो देशभर में गरीबों की संख्या में कमी आएगी और देश का कोई भी व्यक्ति कभी भी खाली पेट नहीं सोएगा..।

बेटा भाग्य से होता है लेकिन बेटियां 100 भाग्य से- ना जाने हमारा समाज कब बदलेगा और यह समझेगा कि बेटी का होना कोई पाप नहीं है। अगर घर में बेटियों का जन्म होता है तो खुशियां मनानी चाहिए ना कि दुःख। घर में बेटियों से ही रौनक होती है ये समाज कब समझेगा। घर बेटियों से ही बनता है ये समाज कब समझेगा। घर में बेटियां ही खुशियां लाती हैं ये समाज कब समझेगा। घर को बेटियां ही स्वर्ग बनाती है ये समाज कब समझेगा। ऐसे ही और भी कई सवाल है जो हम समाज से पूछना चाहते हैं लेकिन क्या समाज के पास उनके जवाब हैं..।? शायद नहीं क्योंकि समाज में अब भी बेटे अहम है और बेटियां कुछ नहीं। एक बार का किस्सा सुनिए। एक छोटी सी बेटी अपने पिता के साथ कहीं जा रही थी लेकिन उसी बीच पिता के दोस्त मिल गए। उन्होंने बेटी के पिता से कहा- 'आपकी केवल एक बेटी है ना'। इस पर पिता ने हाँ कहा। उसके बाद दोस्त ने बड़े ही गर्व से कहा- 'हमारे चार बेटे हैं।' यह सुनते ही छोटी सी बच्ची ने जवाब दिया- 'भगवान बेटियां भी उनको देता है जिनके अंदर उन्हें पालने की औकात हो।' यह सुनने के बाद दोस्त कुछ ना कह सका। इस किस्से को सुनने के बाद शायद आपको समझ आया हो कि बेटियां वाकई में सौभाग्य लाती हैं।

खत्म होना चाहिए भेदभाव- आज लड़कियां हर वो काम कर रहीं हैं जिससे उनके माता-पिता का नाम रोशन हो। आज लडकियां अपने माता-पिता का सहारा बन रहीं हैं और उनके बुढ़ापे में उनका साथ दे रहीं हैं। यह सब देखने के बाद भी अगर लोग भेदभाव करते हैं तो यह गलत है। इसी भेदभाव के चलते आज भी कई लोग अपनी बेटियों को गर्भ में ही मार देते हैं। वहीं कई लोग लड़की पैदा होने के बाद उसे कचरे के ढेर में छोड़ आते हैं। सवाल सिर्फ इतना है कि- 'आखिर कब खत्म होगा ये लड़का-लड़की का भेदभाव'?

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