'कन्नड़ में दवाएं लिखें डॉक्टर..', कांग्रेस शासित कर्नाटक में जोर पकड़ रहा 'भाषावाद' का मुद्दा

'कन्नड़ में दवाएं लिखें डॉक्टर..', कांग्रेस शासित कर्नाटक में जोर पकड़ रहा 'भाषावाद' का मुद्दा
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बैंगलोर: कन्नड़ विकास प्राधिकरण (KDA) ने सोमवार (9 सितंबर) को कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव से एक आदेश जारी करने का आग्रह किया, जिसमें सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में डॉक्टरों को राज्य की आधिकारिक भाषा कन्नड़ में चिकित्सा पर्चे लिखने की मांग की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, मंत्री दिनेश गुंडु राव को लिखे पत्र में KDA के अध्यक्ष पुरुषोत्तम बिलिमाले ने प्रस्ताव दिया कि सरकार उन डॉक्टरों को मान्यता दे और सम्मानित करे, जो अपने काम में कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉक्टरों को भाषा का उपयोग करने की उनकी प्रतिबद्धता के लिए तालुका, जिला और राज्य स्तर पर हर साल डॉक्टर्स डे पर सम्मानित किया जाना चाहिए। बिलिमाले ने कांग्रेस नेता राव को एक ऐसा माहौल बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया, जहां निजी अस्पतालों में कन्नड़-प्रेमी डॉक्टरों के साथ-साथ अस्पताल प्रशासकों को भी अपने अभ्यास में कन्नड़ भाषा का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा सके।

 

वहीं इसका समर्थन करते हुए, राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री शरणप्रकाश पाटिल ने कहा कि, "कन्नड़ में प्रिस्क्रिप्शन लिखने के प्रस्ताव में कुछ भी गलत नहीं है। अधिकांश डॉक्टर कन्नड़ जानते हैं, लेकिन यह सुविधा का मामला है। उन्हें कन्नड़ में दवाओं के नाम लिखना भी सीखना चाहिए।" कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने KDA का जवाब भी दिया है, जिसमे उन्होंने कहा है कि, "नुस्खे और चिकित्सा संबंधी शब्द लचीले होने चाहिए। अगर कोई डॉक्टर कन्नड़ जानता है और स्पष्ट रूप से लिख सकता है, तो वह ऐसा कर सकता है। हालांकि, इसे अनिवार्य बनाना व्यावहारिक नहीं लगता है।"

उन्होंने आगे कहा कि, "नुस्खे ऐसी भाषा में होने चाहिए, जिससे मरीज और डॉक्टर दोनों सहज हों। अगर दोनों कन्नड़ पसंद करते हैं, तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सभी डॉक्टरों से कन्नड़ में लिखने की उम्मीद करना अनुचित है। चिकित्सा संबंधी शब्द, दवा के नाम और रासायनिक संरचनाएँ अंग्रेजी में हैं, और उन्हें बिना किसी त्रुटि के कन्नड़ में अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण है। हालाँकि यह सुझाव भावना के हिसाब से अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं है।"  

 

हालाँकि, कांग्रेस शासित कर्नाटक में तेजी से बढ़ रहे, या फिर जानबूझकर बढ़ाए जा रहे इस भाषावाद के मुद्दे का साइड इफ़ेक्ट भी देखने को मिला है, जहाँ गैर कन्नड़ भाषियों के साथ भेदभाव शुरू हो गया है। लोगों का कहना है कि, हिमालय से समुद्र तक भारत एक है, इसे भाषाओं में नहीं बांटना चाहिए, भाषाएं इस देश की खूबसूरती हैं, किसी भी हिंदी भाषी को दूसरी भाषा से बैर नहीं और होना भी नहीं चाहिए। लेकिन, समाज में विभाजन पैदा करने वाली ताकतें इसको हवा दे रहीं हैं। ताकि, उत्तर-दक्षिण, हिंदी-गैर हिंदी में विभाजन पैदा किया जा सके और फिर उसका सियासी लाभ उठाया जा सके, इससे जनता को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि, हमारे देश में हर राज्य के लोग, हर राज्य में रहते पाए जाते हैं, विभाजन की जगह एकता को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

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