यह तो सभी जानते है की राहु-केतू को गृह का दर्जा दिया गया है। पर क्या आप जानते है की ये दोनों गृह कैसे बने यदि नहीं तो पौराणिक कथा के अनुसार हम आपको बताते है उनकी क्या कहानी है।
राहु और केतू दो अलग-अलग नहीं वल्कि एक ही राक्षस पुत्र था, हिरन्यकश्यप नामक असुर की दो संताने थी जिनमे से एक प्रहलाद था जिसे हम सभी जानते है साथ ही उनकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम था सिंहिका।
सिहिंका के पति विप्रचित थे जिनका एक पुत्र सव्रभानु जिसने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य रखा था की उसे अमर होना है इसी प्रयास में वह अमृत के लिए उस समय देवताओ की कतार में जा खड़ा हुआ जब भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में सभी देवताओ को अमृत पिला रहे थे। जिस कतार में सव्रभानु बैठे हुए थे उनके बगल में सूर्य और चन्द्रमा भी थे जब मोहिनी ने सव्रभानु को अमृत पिला दिया इसके बाद चन्द्रमा और सूर्य ने सव्रभानु का राज खोल दिया जिससे भगवान् विष्णु क्रोधित हुए और उन्होंने सव्रभानु का सिर अपने चक्र द्वारा धड से अलग कर दिया।
चुकी सव्रभानु ने अमृत पी लिया था जिससे वह अमर हो चूका था इसलिए वह जिंदा रहा इस घटना के बाद सव्रभानु का कटा हुआ शरीर उसकी माँ अपने साथ ले आई तथा सर्प का धड उसमे लगा दिया तथा बचे हुए सर्प के धड भगवान् विष्णु ने सव्रभानु का सिर लगा दिया तथा जिसके बाद ब्रम्हा जी ने इन्हें अमर होने के कारण ग्रहों की उपाधि दे दी।
और इस तरह से रहू और केतू को ग्रहों की उपाधि मिली,विद्वान शास्त्रीय कहते है की यह हमेशा बुरा ही नहीं बल्कि यह यदि हमारी राशि के सही मार्ग में है तो हमारा कल्याण भी कर देते है।