कूर्म द्वादशी भगवान श्री हरि विष्णु के कूर्म के रूप में समर्पित किया जाता है. इतना ही नहीं जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु ने दूसरा स्वरुप कूर्म यानी कछुए का अवतार भी लिया था. भगवान के इस अवतार के कारण से ही समुद्र मंथन संभव हुआ था. भगवान श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार समुद्र मंथन के बीच ही लिया गया था. ज्योतिष शास्त्र में लिखा गया है कि समुद्र मंथन के वक़्त मद्रांचल पर्वत समुद्र के धनर धसने लग गए. उस वक़्त भगवान विष्णु कछुए के रूप मे मद्रांचल पर्वत के ही नीचे ही चले गए. इसके पश्चात मद्रांचल पर्वत उनकी पीठ पर स्थापित हुआ. फिर समुद्र मंथन भी पूरा किया गया था.
इस वर्ष कब कूर्म द्वादशी?: पंचाग के अनुसार इस वर्ष कूर्म द्वादशी तिथि की शुरुआत 10 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 19 मिनट पर होने वाली है. वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 11 जनवरी को प्रातः 8 बजकर 21 मिनट पर हो सकती है. ऐसे में कूर्म द्वादशी 10 जनवरी को सेलिब्रेट की जाने वाली है. इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा भी की जा रही है. साथ ही व्रत भी रखने का चलन है. चलिए जानते है ऐसे में क्या करना चाहिए और क्या नहीं...
इस दिन क्या करें: हिन्दू धर्म के अनुसार कूर्म द्वादशी के दिन प्रातः जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लेना बहुत ही ज्यादा जरुरी है. फिर पूजा वाले स्थान को क्लीन कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाना होता है. चौकी पर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करना होता है. मान्यताएं है कि भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करना होता है. भगवान को हल्दी और गोपी चंदन का तिलक लगाना होता है. भगवान को फूलों की माला अर्पण करना चाहिए. भगवान के सामने देशी घी का चिराग भी जलाना अच्छा होता है. विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण स्तोत्र का पाठ जरूर करना बहुत ही अच्छा माना जाता है. शास्त्रों की माने तो भगवान विष्णु की आरती करना होता है. कूर्म अवतार की कथा को पढ़ना और सुनना चाहिए. दिन भर व्रत और से उसके पश्चात सात्विक भोजन को ग्रहण करना चाहिए. पूजा के पश्चात प्रसाद ग्रहण करके ही व्रत को खोल लेना चाहिए.