वासंती रंग में संप्रदायवाद की कड़वाहट क्यों...?
वासंती रंग में संप्रदायवाद की कड़वाहट क्यों...?
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वसंत पंचमी आनंद, उल्लास और उत्सव का पर्व। इस पर्व पर जहां ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। उसी दिन मध्यप्रदेश के शहर धार में तनाव का माहौल निर्मित होने लगता है। रियासतकालीन शहर धार जिसे अपने अलग प्रभाव के लिए जाना जाता है। वसंत पंचमी की आहट होने के पहले ही यहां प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को कानून व्यवस्था बनाने के लिए भागदौड़ करनी पड़ती है। यदि शुक्रवार और वसंत पंचमी साथ - साथ आ जाऐं तो फिर तो शामत ही आ जाती है। जी हां, यहां की भोजशाला में कुछ ऐसा ही तनाव बनता है।

हालांकि इस तरह का तनाव हर ऐसी जगह पर बनता रहा है जहां मंदिर के पुरा अवशेष थे और मस्जि़दों का भी निर्माण करवाया गया। जिस तरह से श्री राम जन्मभूमि बाबरी मस्जि़द को लेकर विवाद की बातें सामने आती रही हैं। अर्थात् यहां पर लोकप्रिय कवि डाॅ. हरिवंश राय बच्चन की अमर कृति मधुशाला की ये पंक्तियां चरितार्थ साबित होती हैं। जिसमें कहा गया है कि बैर कराते मंदिर मस्जि़द, मेल कराती मधुशाला।

दरअसल धार की भोजशाला को हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा सरस्वती का मंदिर कहा जाता है और मुस्लिम धर्मावलंबी इसे कमाल मौला की मस्जिद कहते हैं। हालांकि पहले कभी इस विरासत पर दोनों धर्मों के अनुयायियों के बीच पूजन और इबादत को लेकर मतभिन्नता नहीं रही और न ही कभी विवाद ही हुए लेकिन बीते कुछ वर्षों में मान्यताओं का यह अंतर बढ़ा है जिसके कारण विवाद की स्थितियां निर्मित हुई हैं।

भोजशाला में हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा पूजन और यज्ञ किया जाना है। जबकि मुस्लिम धर्मावलंबियों को यहां जुमे की नमाज़ अता करनी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नमाज़ और पूजन के बीच दो घंटे का समय इस बार के पूजन के लिए दिया गया है। मगर कथित संगठनों का कहना है कि यज्ञ पूर्णाहूति के बिना पूरा नहीं हो सकता है। ऐसे में नमाज़ और पूजन में समन्वय बनाया जाना आवश्यक है।

हालांकि मुस्लिम धर्मावलंबियों का कहना है कि यहां जुमे पर हजारों लोग नमाज़ अता करते हैं। ऐसे में प्रशासन इस बात पर विचार करने में लगा रहता है कि आखिर ऐसा क्या उपाय हो जो दोनों ही धर्मों के अनुयायियों की आस्था और इबादत को बनाए रखे व आयोजन सद्भाव के साथ पूर्ण हो। पूजन के लिए दोपहर 12 बजे से 3.30 बजे तक पूजन का समय दिया गया है तो दूसरी ओर नमाज़ हेतु 1 बजे से 3 बजे का समय दिया गया है।

हालांकि दोनों ही समुदाय के लोगों को आपस में सद्भाव से रहने की अपील की गई है लेकिन फिर भी संप्रदायवादी ताकतें इस तरह के अवसरों की ताक में रहती हैं जिसके चलते धार्मिक उन्माद का माहौल निर्मित हो सकता है। इस पुरातात्विक स्मारक पर लोगों को एक दिन के महत्वकारी पूजन की अनुमति दिया जाना भी बेहद आवश्यक है।

यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। भोजशाला में इस विवाद का हल पूजन और नमाज़ को लेकर समय प्रबंधन का ही है लेकिन फिर भी इस स्मारक के पास दोनों ही धर्मों के धर्म स्थल भोजशाला की ही तरह निर्मित कर वहां दोनों को पृथक - पृथक पूजन करने दिया जा सकता है। हालांकि पुरातात्विक स्मारक पर नियम के तहत किसी तरह का निर्माण नहीं हो सकता है ऐसे में नए स्थल पर पूजन का विकल्प कुछ मुश्किल है।

जिसके कारण प्रशासन को इस आयोजन के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती है। हां दोनों ही धर्मों को एक दूसरे के प्रति सद्भाव बढ़ाने संबंधी उपाय किए जा सकते हैं। जिस तरह से अयोध्या में श्री रामलला के दर्शनों के लिए फूल चुनने का कार्य मुस्लिम धर्मावलंबी करते हैं उसी तरह से धार की भोजशाला में पूजन के सद्भावपूर्ण आयोजन में यह अध्याय जरूर जु़ड़ सकता है कि यहां भी हिंदूओं के पूजन के लिए मुस्लिमों द्वारा पूजन सामग्री की दुकान सजाई जाए।

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