क्या मुगलों की संतान थीं इंदिरा गांधी ? 'बाबर' की कब्र पर जाकर कही थी देशद्रोही बात
क्या मुगलों की संतान थीं इंदिरा गांधी ? 'बाबर' की कब्र पर जाकर कही थी देशद्रोही बात
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आज देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है, इंदिरा को सत्ता विरासत में मिली थी। लेकिन आज तक आपने कभी इंदिरा गांधी के जीवनकाल में झाँकने की कोशिश की है? क्या वो इस देश की प्रधानमंत्री बनने लायक भी थी ? इमरजेंसी, मुस्लिम तुष्टिकरण से लेकर दंगों की राजनीति तक इंदिरा गांधी विरोधियों के साथ ही कई कांग्रेस नेताओं के निशाने पर रहीं। आज हम इंदिरा गांधी के मैमूना बेगम बनने की पूरी कहानी आपके सामने रख रहे हैं, बाकी फैसला आपके ऊपर है। 

हिंदुस्तान हमारे कब्जे में है:-

कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब “Profile and Letters” (ISBN: 8129102358) में इस संबंध में सनसनीखेज खुलासा किया था। नटवर सिंह लिखते हैं, 'मैं मैमुना बेगम उर्फ़ इंदिरा गांधी के साथ अफगानिस्तान में था। रात्रि में इंदिरा ने बाबर की कब्र पर जाने की इच्छा प्रकट की, तो मैं उनके साथ कब्र पर पहुंचा। मैंने देखा कि इंदिरा गांधी ने वहाँ कहा कि हम तुम्हारे वारिस हैं और आज भी मुल्क हमारे कब्जे में है। मैं हतप्रभ था और स्तब्ध था।' इससे ये बात तो स्पष्ट है, जिस बाबर और उसके वंशजों से हिंदुस्तान को बचाने के लिए महराणा प्रताप और शिवाजी जैसे वीर पुत्रों ने अंतिम सांस तक संघर्ष किया, हमने आज़ादी के बाद देश की कमान उन्ही मुगलों के हाथ में सौंप दी। 


1971 का युद्ध और 54 भारतीय सैनिक :-

1971 में इंदिरा गांधी ही देश की प्रधानमंत्री थीं, जब पाकिस्तान ने बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) पर हमला कर दिया था। बांग्लादेश को आज़ाद कराने में इंदिरा गांधी की बड़ी भूमिका मानी जाती है। लेकिन बहुत कम लोग ही इस बात को जानते होंगे कि, इस युद्ध में भारत की सेना ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों और नागरिकों को गिरफ्तार किया था। इनमें पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या 81 हजार और नागरिकों की संख्या 12 हजार थी। लेकिन इस युद्ध के बाद पाकिस्तान प्रेम में इंदिरा गांधी ने उन सभी युद्धबंदियों को पाकिस्तान वापस भेज दिया था।  जबकि इसी युद्ध के दौरान पाक द्वारा पकड़े गए 54 भारतीय सैनिकों को छुड़ाने के लिए कोई समझौता नहीं किया गया। इन 54 सैनिकों को आज भी देश में Missing 54 कहा जाता है। इन 54 सैनिकों में 30 थल सेना के सौनिक और 24 वायु सेना के सैनिक थे। काश, उस वक़्त कोई राष्ट्रभक्त देश का प्रधान होता तो 'अभिनन्दन' की तरह माँ भारती के वे 54 पुत्र भी वापस आ जाते और शायद पाकिस्तान के 93 हज़ार सैनिकों को रिहा करने के एवज में कश्मीर समस्या सुलझा ली गई होती। 

ख़राब आचरण के कारण यूनिवर्सिटी से निकाला :- 

जवाहर लाल नेहरू ने इंदिरा गांधी को बड़ी उम्मीदों के साथ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेजा गया था, ताकि वह पढ़-लिखकर देश का कुछ भला कर सकें। लेकिन कुछ समय में ही खराब प्रदर्शन के कारण इंदिरा को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया जाता है। इसके बड़ा नेहरू ने रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा संचालित 'शांतिनिकेतन' में भर्ती कराया, लेकिन क्या आप इसे संयोग कहेंगे कि टैगोर ने भी 'ख़राब आचरण' के कारण इंदिरा को  शांतिनिकेतन से निकाल दिया। तो क्या अपने 'आचरण' के कारण कहीं से भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई इंदिरा गांधी का आचरण देश का प्रधानमंत्री बनने लायक हो सकता है ?  और वो ख़राब आचरण क्या था, इस बारे में भी जानते हैं। 

अनगिनत अवैध संबंध:- 

कहा जाता है, रवीन्द्रनाथ टैगौर को इंदिरा गाँधी के प्रेम संबंधों का पता चल गया था, इसलिए उन्होंने शांतिनिकेतन का वातावरण न बिगड़े सोचकर इंदिरा को निकालने का फैसला लिया। अपनी पुस्तक “the life of Indira Nehru Gandhi” में  कैथरीन फ्रैंक ने इंदिरा गांधी के कई प्रेम संबंधों पर प्रकाश डाला है, साथ ही के.एन. राव की पुस्तक “नेहरू राजवंश” में भी उनके संबंधों का खुलासा किया गया है। इनमे स्पष्ट लिखा हुआ है कि इंदिरा शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ अनैतिक संबंध में थी, शायद इसलिए टैगोर ने उन्हें निकाल दिया हो। इसके बाद में इंदिरा के संबंध अपने पिता के सचिव एम ओ मथाई के साथ भी रहे, जिसका खुलासा खुद मथाई ने अपनी किताब  “Reminiscences of the Nehru Age” में किया है। इसके साथ ही इंदिरा के नाज़ायज़ संबंध उनके योग शिक्षक धीरेंद्र ब्रह्मचारी और पूर्व विदेशमंत्री दिनेश सिंह के साथ भी रहे। नेहरू के सचिव रहे मथाई ने तो अपनी पुस्तक “Reminiscences of the Nehru Age” में नेहरू परिवार के इतने काले राज खोले थे कि प्रकाशन के कुछ समय बाद ही कांग्रेस सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया और सारी कॉपियां जब्त कर ली गईं। यहाँ सोचने वाली बात ये है कि देश का राजा अगर इतना कामी और भोगी-विलासी होगा तो वो प्रजा पर क्या ही ध्यान दे पाएगा, इसके उदारहण हम मगध के राजा धनानंद जैसे शासकों की कहानी में देख चुके हैं। 


कैसे बनीं मैमूना बेगम :-

शान्तिनिकेतन से निकले जाने के बाद इंदिरा गाँधी की पढ़ाई बंद हो गई और वे घर आ गईं और बिल्कुल अकेली हो गयी थीं। उस वक्त तक इंदिरा की माँ कमला नेहरू की मौत हो ही चुकी थी और पिता सियासत में व्यस्त थे। बताया जाता है कि इनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नामक एक व्यापारी ने उठाया, जो नेहरू के घर शराब की डिलीवरी करने जाया करता था। इस दौरान फ़िरोज़ खान और इंदिरा गाँधी के बीच संबंध स्थापित हो गए। महाराष्ट्र के तत्कालीन गवर्नर डा. श्रीप्रकाश ने नेहरू को इस बारे में चेताया भी था कि इंदिरा का फिरोज खान के साथ नाज़ायज़ संबंध चल रहा था। लेकिन राजनीति और 'एडविना' में व्यस्त नेहरू इस तरफ ध्यान नहीं दे पाए और इंदिरा ने लंदन की एक मस्जिद में जाकर फ़िरोज़ के साथ निकाह कर लिया और मुस्लिम धर्म अपनाकर अपना नाम मैमूना बेगम रख लिया। हालांकि, फ़िरोज़ से निकाह करना और मुस्लिम बनना इंदिरा का निजी मसला था, लेकिन इसके लिए देशवसियों को धोखा दिया गया, जो राष्ट्रीय मसला था। इंदिरा के मुस्लिम बनने के बाद नेहरू को प्रधानमंत्री पद जाने का डर सताने लगा, क्योंकि वे इंदिरा को PM बनते देखना चाहते थे। अब नेहरू, फ़िरोज़ खान को उसका उपनाम बदल कर गाँधी रखने के लिए राजी करते हैं और उसे विश्वास दिलाते हैं कि सिर्फ उपनाम खान की जगह गाँधी इस्तेमाल करो और धर्म बदलने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। दोनों ने अपना उपनाम बदल लिया और जब दोनों भारत आये तो जनता को बेवकूफ बनाने के लिए यहाँ दोनों की हिन्दू रीती-रिवाज़ से शादी कर दी गई। इसी के साथ फ़िरोज़ खान से फ़िरोज़ गांधी बन जाते हैं और करोड़ों देशवासी 'मुर्ख', जो आज भी बन ही रहे हैं। 

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