निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने बताया, अब मेरा नजरिया पूरी तरह बदल चुका है...
निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने बताया, अब मेरा नजरिया पूरी तरह बदल चुका है...
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पत्रकार से फिल्मकार बने विवेक अग्निहोत्री की जड़ें ओशो की जमीन से जुड़ी हैं। करियर भी कुछ कुछ उनका ओशो के रास्ते पर ही चलता रहा है। पहले चॉकलेट, हेट स्टोरी जैसी फिल्में और फिर बुद्धा इन ट्रैफिक जाम, ताशकंद फाइल्स। विवेक इन दिनों विश्वभ्रमण पर हैं और अपनी आगामी फिल्म द कश्मीर फाइल्स के लिए कश्मीर से विस्थापित लोगों से मिल रहे हैं। विवेक ने एक मिडिया रिपोर्टर द्वारा पूछे गए सवाल के जबाब कुछ यूँ दिए |
 
किसी लेखक या विचारक के लिए घूमते रहना कितना जरूरी है- चलते रहना ही जिंदगी की असली निशानी है। रुकने से बुद्धि का विस्तान नहीं होता। जब मैं यायावर नहीं था तो एक तरह की फिल्में बनाता था जैसे चॉकलेट वगैरह। अब मेरा नजरिया पूरी तरह बदल चुका है। हेट स्टोरी बनाने वाला विवेक यदि अब लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर फिल्म बना रहा है तो ये सब हमारी संगत का असर होता है। हमारे आसपास के लोग हमारी सोच पर बहुत असर डालते हैं। कोई न कोई हमारे आसपास ऐसे लोग होते हैं जो हमसे ये सब करवाते हैं वर्ना अपने आप तो बुद्धि परिवर्तन होता नहीं है।


किसी फिल्म के लिए रिसर्च को कितना जरूरी मानते हैं आप- फिल्में हमारी अर्थ व्यवस्था का एक हिस्सा हैं। मतलब कि ये भी एक उत्पाद है जिसे लोग पैसे चुकाकर देखते हैं। हम एक ऐसे दौर में हैं जहां दिल्ली और मुंबई में बैठी पत्रकारों की एक ऐसी पौध जिसने हिंदुस्तान ठीक से देखा भी नहीं है, भारत के अमेरिका जैसा बन जाने की सोच में डूबी रहती है। भारत की चिंताएं अलग हैं। इसकी चुनौतियां अलग हैं। बीते पांच साल में मैंने पांच-छह सौ जगहों पर वार्ताओं में हिस्सा लिया, लोगों से मिला। इससे पता चलता है कि लोग देखना क्या चाहते हैं। किसी उत्पाद को बाजार में लाने से पहले कंपनियां महीनों रिसर्च करती हैं। फिल्म के बारे में भी हमें जानना चाहिए कि दर्शक क्या चाहते हैं।

मतलब कि कश्मीर फाइल्स बनाने से पहले आप हजारों लोगों से मिल रहे हैं, परन्तु ताशकंद फाइल्स में तो ऐसी रिसर्च नहीं की थी आपने- ताशकंद फाइल्स में हमारे पास लोग नहीं थे उतने। हम कुल जमा सात-आठ लोग थे। कुलदीप नैयर थे हमारी टीम में, सेवानिवृत्त एयर चीफ अर्जन सिंह थे। हम लोगों ने कुल 32 आरटीआई फाइल कीं लाल बहादुर शास्त्री के निधन को लेकर। लेकिन, कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली। हमारी व्यवस्था हमें सच जानने नहीं देती। संविधान भले सत्यमेव जयते के सिद्धांथ पर खड़ा हो परन्तु हमारी व्यवस्था इसमें बड़ी बाधा है। फिर हमने लोगों से अपील की और जिसके पास जो भी जानकारी थी, सब हम तक पहुंची।

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