'काफिरों' तुम्हारा अंत निकट है..., जब जिन्ना के कहने पर मुस्लिमों ने किया था हिन्दुओं का 'नरसंहार'
'काफिरों' तुम्हारा अंत निकट है..., जब जिन्ना के कहने पर मुस्लिमों ने किया था हिन्दुओं का 'नरसंहार'
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15 अगस्त 2021 को भारत ने अपनी स्वतंत्रता का 75वां वर्ष मनाया है। स्वतंत्रता मिलने के ठीक एक वर्ष पहले 16 अगस्त 1946 को भारत ने मजहबी कट्टरपंथ का वह रूप देखा, जिसका भय आज भी कलकत्ता के लोगों में नज़र आ सकता है। मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इस दिन ‘डायरेक्ट एक्शन डे (Direct Action Day)’ का ऐलान किया था, जिसके बाद लाखों की तादाद में मुस्लिम, कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में जमा हुए थे और सिर्फ कुछ घंटों के अंदर ही हजारों हिन्दुओं को काट डाला गया था। मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं का किया गया यह नरसंहार इतना क्रूर था कि आज तक यह पता ही नहीं चल सका है कि उस ‘द ग्रेट कलकत्ता किलिंग’ के दौरान मरने वाले हिन्दुओं की तादाद कितनी थी। ये समय था 1946 का, जब ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं।  ऐसे में ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली ने एक 3 सदस्यीय दल, जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया, भारत भेजा। इस दल का उद्देश्य था भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने की अंतिम योजना को मूर्त रूप देना।

इस दल ने भारत आकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ बैठक कि, जिसमे मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग देश की मांग रख दी और संविधान सभा का बहिष्कार भी कर दिया। इसके बाद जिन्ना ने मुंबई में एक प्रेस वार्ता कि, जिसमे उसने कहा कि मुस्लिम लीग अपना अलग देश 'पाकिस्तान' चाहता है और अगर उन्हें ये नहीं दिया जाता, तो वे 'डायरेक्ट एक्शन डे' को अंजाम देंगे। अंततः जिन्ना ने ऐलान कर दिया कि 16 अगस्त का दिन ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ होगा। वैसे तो जिन्ना ने देशभर में डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी थी, मगर तत्कालीन बंगाल में मुस्लिम लीग का ही राज था और वहाँ सत्ता में बैठा हुआ था पीएम हसन शहीद सुहरावर्दी, जिसे बंगाल में हुए हिन्दुओं के भीषण नरसंहार का मास्टरमाइंड माना जाता है। उसकी शह पर मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर बंगाल में खुलकर अपने हिन्दुओं के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और उनकी बहन-बेटियों के साथ दरिंदगी की। हिन्दुओं के घरों-दुकानों में आग लगा दी गई। 16 अगस्त 1946 के दिन भी सुबह तक स्थिति सामान्य नज़र आ रही थी। मगर दोपहर आते-आते शहर के विभिन्न इलाकों से तोड़फोड़, आगजनी और पत्थरबाजी की घटनाओं की ख़बरें फैलने लगी। लेकिन अभी तक किसी को अंदाजा नहीं था कि ये छुटपुट घटनाएँ हिन्दुओं के भीषण नरसंहार में तब्दील होने वाली हैं। कलकत्ता और उसके आसपास के इलाकों से मुस्लिमों की भीड़ इकठ्ठा होना शुरू हो चुकी थी। नमाज का वक़्त था और इस समय मुस्लिमों की भीड़ जुटती ही थी, मगर उस दिन मुस्लिमों की तादाद कुछ अधिक ही थी। फिर समय हुआ दोपहर 2 बजे की नमाज का। इस दौरान लाखों की तादाद में मुस्लिम जमा हो गए और ज्यादातर के हाथों में लोहे की रॉड और लाठी-डंडे थे।

मुस्लिमों की इस भीड़ को ख्वाजा नजीमुद्दीन और सुहरावर्दी के भाषण ने हिंसक दंगाइयों की भीड़ में तब्दील कर दिया, जो हिन्दुओं के खून की प्यासी नज़र आ रही थी। कलकत्ता में महज 72 घंटों के अंदर ही 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे।  20 हजार से अधिक जख्मी हो गए थे।  1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। जुगल चंद्र घोष नाम के एक स्थानीय प्रत्यक्षदर्शी ने बताया था कि उसने 4 ट्रक देखे थे जिसमें 3 फुट की ऊँचाई तक स्जव भरे हुए थे और उनमे से खून और विभिन्न अंग बाहर आ रहे थे। एक रिपोर्ट के अनुसार, डायरेक्ट एक्शन डे में कुल 5 लाख मुसलामानों ने हिन्दुओं का कत्लेआम मचाया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि, उस दिन कलकत्ता की सड़कों पर बेबस हिन्दुओं की चीख-पुकार के अलावा केवल, ‘अल्लाह-हु-अकबर’, ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘लड़ के लेंगे पाकिस्तान’ और ‘कायदे आजम जिंदाबाद’ जैसे नारे ही सुनाई दे रहे थे। कलकत्ता के तत्कालीन महापौर और कलकत्ता मुस्लिम लीग के सचिव एसएन उस्मान ने पागल हो चुकी उस भीड़ में बांग्ला भाषा में लिखे हुए पत्रक बाँटे थे जिनमें लिखा हुआ था, 'काफेर! तोदेर धोंगशेर आर देरी नेई। सार्बिक होत्याकांडो घोतबे”, जिसका अर्थ था, “काफिरों! तुम्हारा अंत अब ज्यादा दूर नहीं है। अब हत्याकांड होगा।' इसके बाद कोलकाता में जो रक्तपात मचा, उसकी तस्वीरें देखकर आज भी सिहरन महसूस होती है। 

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