एक दशक से है ध्यानचंद स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय हॉकी का इंतजार
एक दशक से है ध्यानचंद स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय हॉकी का इंतजार
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खाली पड़ी कुर्सियां, चारों तरफ पसरा सन्नाटा और बरसों से चली आ रही प्रतीक्षा। दुनिया की शीर्ष हॉकी टीमों के हुनर से जहां अगले कुछ दिन में ओडिशा गुलजार होने वाला है, वहीं इंडिया ही नहीं, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर बना नेशनल स्टेडियम यूं ही बेनूर पड़ा अंतरराष्ट्रीय हॉकी के लिये प्रतीक्षा करता रहता है। 

दिल्ली के दिल में बने इस ऐतिहासिक स्टेडियम को कभी ‘भारतीय हॉकी का मंदिर' बोला जाता था लेकिन पिछले करीब एक दशक से यहां अंतरराष्ट्रीय हॉकी नहीं हुई है। यह यकीन करना मुश्किल है कि कभी तकरीबन 20000 दर्शकों के शोर से इसका जर्रा जर्रा गूंजता था। जब भारत ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को वर्ल्ड कप 2010 और उसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में मात दी थी तो खचाखच भरे स्टेडियम में जज्बात का सैलाब उमड़ पड़ा था। 

भावनगर के महाराजा की ओर से दिल्ली को तोहफे में मिले नेशनल स्टेडियम (पूर्व नाम इरविन एम्पीथिएटर) ने 1951 में पहले एशियाई खेल देखे और 1982 एशियाई खेलों के हॉकी फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार के उपरांत खिलाड़ियों के आंसू भी। इसी मैदान पर आस्ट्रेलिया ने 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में भारतीय हॉकी के सीने पर 8 गोल दागे थे। यहां आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2014 हीरो  वर्ल्ड लीग फाइनल हुआ था। संस्थानों की अंतर विभागीय हॉकी यदा कदा यहां होती है। तत्कालीन भारतीय हॉकी प्रशासन के दिल्ली को लेकर उदासीन रवैये और उस समय इंडियन हॉकी की संकटमोचक बनकर उभरी ओडिशा सरकार के खेलप्रेम के चलते अंतरराष्ट्रीय हॉकी का केंद्र भुवनेश्वर बन चुका है। 

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