देवउठनी एकादशी पर होता है चातुर्मास रामायण का समापन
देवउठनी एकादशी पर होता है चातुर्मास रामायण का समापन
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हिन्दू धर्म में हर त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है. दिवाली हिन्दुओ के सबसे प्रमुख त्यौहारों में से एक माना जाता है. दिवाली के साथ ही कई प्रकार के त्यौहार जुड़े रहते है. दिवाली के पहले जहां विजयादशमी और धनतेरस जैसे त्यौहार आते है. वही दिवाली के ठीक बाद भाई दूज और देवउठनी ग्यारस जैसे मुख्य त्यौहार मनाये जाते है. देवउठनी ग्यारस को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन हिन्दू धर्म में पवित्र और पूजनीय गन्ने और तुलसी की पूजा होती है. इस दिन को गन्ना-तुलसी विवाह दिवस के नाम से भी जाना जाता है.

देवउठनी ग्यारस के दिन लोग गन्ने और तुलसी की पूजा करते है. इस दिन क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत कराने की प्रार्थना की जाती है. इसी दिन से विवाह जैसे शुभ कार्य भी प्रारंभ हो जाते है. इसी के साथ इस प्रबोधिनी एकादशी पर हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ रामायण (रामचरितमानस) का भी समापन होता है. 

चातुर्मास रामायण का समापन...

देवउठनी ग्यारस पर चातुर्मास रामायण के समापन का भी काफी महत्त्व है. हिन्दू धर्म में घर-घर में रामायण का पाठ किया जाता है. चातुर्मास अर्थात चार माह की अवधि तक घरो में पूरे विधि-विधान से रामायण का पाठ चलता है. जिसका समापन ग्यारस पर पूरे विधि-विधान के साथ होता है. चातुर्मास रामायण पाठ की  शुरुआत आसाढ़ मास की एकादशी पर होता है. इस वर्ष रामायण पारायण की शुरूआत देवशयनी एकादशी 4 जुलाई को हुई थी. और देवउठनी ग्यारस पर चार माह अवधि पूर्ण होने पर इसका समापन होगा. 

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