देवउठनी एकादशी व्रत कथा...
देवउठनी एकादशी व्रत कथा...
Share:

देवउठनी ग्यारस जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है. इसे पाप मुक्त करने वाली एकादशी भी माना जाता है. वैसे तो सभी एकादशी पापो से मुक्त करने के लिए ही की जाती है लेकिन इस एकादशी का सबसे ज्यादा महत्त्व होता है. इस दिन से चार महीने पूर्व शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवं अन्य सभी देवता श्रीरसागर में जाकर सो जाते है. इसलिए इन चार महीनो के लिए बड़े मांगलिक कार्य जैसे शादी, मुंडन, नामकरण आदि नहीं होते है. ये सभी शुभ कार्य देवउठनी ग्यारस से ही प्रारम्भ होते है. इस दिन माता तुलसी का विवाह कर शादियों की शुरुआत की जाती है.

देवउठनी ग्यारस पर व्रत करने का भी अधिक महत्व होता है. इस दिन ग्यारस कथा कर अपने व्रत को आप पूरा कर सकते है. आप भी पढ़िए देवउठनी एकादशी व्रत कथा-

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे. प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था. एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें. तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं. किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा. उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा. मैं भूखा ही मर जाऊंगा. मुझे अन्न दे दो.

राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए. वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा. जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है. उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे. भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया.

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए. उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया. राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं. इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता. यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं. मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए. राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें. राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए. अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा.

 

लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा. प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे. खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए. यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. इससे राजा को ज्ञान मिला. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ.

छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व

पीएम मोदी ने की, दीपावली मिलन समारोह में मीडियाकर्मियों से बात

उत्तराखंड में रोडवेज़ कर्मचारियों को मिली सौगात

 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -