देवउठनी एकादशी से होते हैं 100 जन्मों के पाप नष्ट, ब्रह्मा जी ने बताई थी यह बात
देवउठनी एकादशी से होते हैं 100 जन्मों के पाप नष्ट, ब्रह्मा जी ने बताई थी यह बात
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आप सभी को बता दें कि कल सभी जगहों पर देव उठनी एकादशी मनाई जाने वाली है. ऐसे में कहते हैं कि देवउठनी एकादशी 100 जन्मों के पाप नष्ट करती है और बहुत पुण्यदायिनी होती है. कहा जाता है स्वयं ब्रह्मा ने इसके बारे में बखान किया था. कहते हैं हिन्दू धर्म में ब्रह्मा एक प्रमुख देवता हैं और उन्हें सृष्टि का रचयिता कहते हैं. उनके द्वारा ही देव प्रबोधिनी एकादशी (देवउठनी एकादशी) का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है आइए बताते हैं.

ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! अब पापों को हरने वाली पुण्य और मुक्ति देने वाली एकादशी का माहात्म्य सुनिए. पृथ्वी पर गंगा की महत्ता और समुद्रों तथा तीर्थों का प्रभाव तभी तक है, जब तक कि कार्तिक की देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि नहीं आती. मनुष्य को जो फल एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों से मिलता है वही प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है.

नारदजी कहने लगे कि- हे पिता! एक समय भोजन करने, रात्रि को भोजन करने तथा सारे दिन उपवास करने से क्या फल मिलता है सो विस्तार से बताइए. ब्रह्माजी बोले- हे पुत्र. एक बार भोजन करने से एक जन्म और रात्रि को भोजन करने से दो जन्म तथा पूरा दिन उपवास करने से 7 जन्मों के पाप नाश होते हैं. जो वस्तु त्रिलोकी में न मिल सके और दिखे भी नहीं वह हरि प्रबोधिनी एकादशी से प्राप्त हो सकती है. मेरु और मंदराचल के समान भारी पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा अनेक जन्म में किए हुए पाप समूह क्षणभर में भस्म हो जाते हैं. जैसे रुई के बड़े ढेर को अग्नि की छोटी-सी चिंगारी पलभर में भस्म कर देती है. विधिपूर्वक थोड़ा-सा पुण्य कर्म बहुत फल देता है, परंतु विधिरहित अधिक किया जाए तो भी उसका फल कुछ नहीं मिलता.

संध्या न करने वाले, नास्तिक, वेद निंदक, धर्मशास्त्र को दूषित करने वाले, पापकर्मों में सदैव रत रहने वाले, धोखा देने वाले ब्राह्मण और शूद्र, परस्त्रीगमन करने वाले तथा ब्राह्मणी से भोग करने वाले ये सब चांडाल के समान हैं. जो विधवा अथवा सधवा ब्राह्मणी से भोग करते हैं, वे अपने कुल को नष्ट कर देते हैं. परस्त्रीगामी के संतान नहीं होती और उसके पूर्व जन्म के संचित सब अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं. जो गुरु और ब्राह्मणों से अहंकारयुक्त बात करता है वह भी धन और संतान से हीन होता है. भ्रष्टाचार करने वाला, चांडाली से भोग करने वाला, दुष्ट की सेवा करने वाला और जो नीच मनुष्य की सेवा करते हैं या संगति करते हैं, ये सब पाप हरि प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं. जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करने का संकल्प मात्र करते हैं उनके 100 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. जो इस दिन रात्रि जागरण करते हैं उनकी आने वाली 10 हजार पीढ़ियां स्वर्ग को जाती हैं. नरक के दु:खों से छूटकर प्रसन्नता के साथ सुसज्जित होकर वे विष्णुलोक को जाते हैं. ब्रह्म हत्यादि महान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं. जो फल समस्त तीर्थों में स्नान करने, गौ, स्वर्ण और भूमि का दान करने से होता है, वही फल इस एकादशी की रात्रि को जागरण से मिलता है. हे मुनिशार्दूल. इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सफल है जिसने हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत किया है.

वही ज्ञानी तपस्वी और जितेन्द्रिय है तथा उसी को भोग एवं मोक्ष मिलता है जिसने इस एकादशी का व्रत किया है. वह विष्णु को अत्यंत प्रिय, मोक्ष के द्वार को बताने वाली और उसके तत्व का ज्ञान देने वाली है. मन, कर्म, वचन तीनों प्रकार के पाप इस रात्रि को जागरण से नष्ट हो जाते हैं. जो कल्याण के लिए इस मास में हरि कथा कहते हैं वे सारे कुटुंब का क्षणमात्र में उद्धार कर देते हैं. शास्त्रों की कथा कहने-सुनने से 10 हजार यज्ञों का फल मिलता है. जो नियमपूर्वक हरिकथा सुनते हैं वे 1,000 गोदान का फल पाते हैं. विष्णु के जागने के समय जो भगवान की कथा सुनते हैं वे सातों द्वीपों समेत पृथ्वी के दान करने का फल पाते हैं. कथा सुनकर वाचक को जो मनुष्य सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं उनको सनातन लोक मिलता है. 

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