विद्यार्थियों के विरोध से सिक रही हैं राजनीति की रोटियां
विद्यार्थियों के विरोध से सिक रही हैं राजनीति की रोटियां
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इन दिनों छात्र आंदोलन से देश गर्मा रहा है। एक ओर हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या को दबंग और दलित के बीच का विवाद बढ़ गया है। इस घटना को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। तो दूसरी ओर प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों की पिटाई की जा रही है। बेचारे छात्र राजनीति के द्वंद्व में पिस रहे हैं। नेताओं को आंदोलन की गर्माहट में अपने मतलब की रोटियां सिकती नज़र आ रही हैं। तो दूसरी ओर 1861 के पुलिस कानून से बंधी पुलिस विद्यार्थियों को खदेड़ने में लगी रही।

यही नहीं विद्यार्थियों को जिस तरह से पिटा गया उस पर राजनीतिक विरोध भी मौन रहा। कांग्रेस, भाजपा और केंद्र व राज्यों के मंत्री एक दूसरे पर बयानबाजी करते हुए आरोप प्रत्यारो लगाते रहे लेकिन एक विद्यार्थी की मौत हो गई तो दूसरी ओर सैकड़ों विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़कर आंदोलन करते रहे। केंद्रीय विश्वविद्यालयों की इस तरह की बदहाल हालत देश के शिक्षा संस्थानों की स्थिति को बयां कर रही है।

छात्र को लेकर जिस तरह की राजनीति चल रही है। उससे देश के राजनीतिक हालात की जानकारी मिल रही है। दरअसल कांग्रेस इस समय सत्ता में वापसी का अपना अवसर तलाश रही है तो भारतीय जनता पार्टी बचाव की मुद्रा में आकर विकास को अपनी ढाल बना रही है। हालांकि असहिष्णुता का मसला गाहे - बगाहे भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर रहा है। कांग्रेस दलितों, असहिष्णुता, संप्रदायवाद का विरोध कर अपने वोटबैंक को बढ़ाकर पुर्नजीवित होने का प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर भाजपा नेतृत्व वाली सरकार सत्ता के गलियारे में इस तरह की बातों से खुद को अलग करने का प्रयास कर रही है। 

'लव गडकरी'

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