ओलिंपिक में हार के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, दीपा करमाकर ने भारत में जिम्नास्टिक से की नई शुरुआत
ओलिंपिक में हार के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, दीपा करमाकर ने भारत में जिम्नास्टिक से की नई शुरुआत
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दीपा करमाकर , भारत की ऐसी एथलीट जिनकी हार ने भी उन्हें देश में एक प्रेरणा बना दिया. साल 2016 में दीपा ने रियो ओलिंपिक में हिस्सा लिया और वह चौथे स्थान पर रही. किसी भारतीय का यह ओलिंपिक में जिम्नास्टिक में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. देशभर के लिए दीपा स्टार बन गईं. हर जगह उनके नाम की चर्चा होने लगी थी. उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा से निकलकर उन्होंने देश में जिम्नास्टिक को एक ऐसे खेल के तौर पेश किया जिसमें सफलता हासिल की जा सकती है. दीपा को अगर हम भारत में इस खेल का चेहरा कहें को गलत नहीं होगा. छह साल की उम्र में शुरू किया सफर दीपा के पिता साई केंद्र में एक कोच थे, जिसके कारण दीपा को बचपन से ही खेलों से बहुत लगाव था. मात्र 6 साल की उम्र से ही दीपा मे जिमनास्टिक की तैयारी शुरु कर दी. दीपा कर्माकर को मुश्किल तब आईं जब उन्हें पता चला कि वो 'फ्लैट फुट' हैं. दीपा तब करीब 8-9 साल की हो चुकी थीं. 'फ्लैट फुट' के बारे में अमूमन कहा जाता है कि फ्लैट फुट वाले जिमनास्टिक नहीं कर सकते हैं लेकिन दीपा के कोच नंदी सर ने उनको कुछ फिटनेस एक्सरसाइज कराई और ऐसा करने के बाद उनकी परेशानी दूर हो गईं.सन 2007 मे ये जूनियर नेशनल कम्पटीशन जलपॉइगुड़ी मे जीती जिसने इनके मनोबल को और बढ़ाया.

दीपा 2011 में त्रिपुरा का प्रतिनिधित्व कर राष्ट्रीय खेलों में पांच पदक जीत कर सुर्खियां बटोरी. दिल्ली में 2010 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में वह भारतीय जिमनास्टिक टीम का हिस्सा भी थीं, जहां उन्होंने आशीष कुमार (Ashish Kumar) को जिमनास्टिक में भारत का पहला पदक जीतकर इतिहास रचते देखा. आशीष को अपनी प्रेरणा मानने वाली दीपा ने 2014 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में महिला वॉल्ट वर्ग के फाइनल में कांस्य पदक जीता. एशियाई कांस्य पदक विजेता दीपा ने आर्टिस्टिक जिमनास्टिक में ओलिंपिक का टिकट हासिल किया है.दीपा को दिया गया सम्मान

दीपा करमाकर को साल 2016 में रियो ओलिंपिक में किए गए असाधारण प्रदर्शन की बदौलत राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान से नवाजा गया. अगले साल उन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. साल 2017 में ही दीपा फोर्ब्स की 30 साल से कम उम्र की एशिया की सुपर अचीवर्स में शामिल किया गया. एक बार एक विदेशी कोच ने वॉल्ट की एक नई तकनीक को लेकर कह दिया कि लड़कियां नहीं कर पाएंगी. दीपा को ये बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने आखिर में उस तकनीक पर जीत हासिल करके ही दम लिया और इसका श्रेय वो अपने कोच को देती हैं.

दीपा हर सफलता में अपने गुरु को पहला स्‍थान देती है. यहां तक कि जब उन्‍हें अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा जा रहा था तो वह कार्यक्रम में सफेद रंग के मोजे पहनकर गई थीं. वो मोजे कोच के थे. दीपा चाहती थीं कि जब वो पुरस्कार लें, तो कोच किसी न किसी रूप में उनके साथ मौजूद हो. दीपा कर्माकर की संघर्ष की कहानी से ऐसा बहुत कुछ सीखा जा सकता है जो किसी भी महिला की जिंदगी को बदल सकता है. दीपा हमेशा कहती हैं, 'जब आप किसी चीज के लिए पागल होते हैं चाहे वो कुछ भी हो, ऐसे में आपको खुद से बहुत सारी उम्मीदें होती हैं और उन उम्मीदों पर खड़े उतरना ही आपको आपकी मंजिल के बहुत नजदीक ले जाता है.'

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