तेहरान: ईरान में हिजाब को लेकर नया कानून लागू किया गया है, जिसने न केवल देश के अंदर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहस छेड़ दी है। यह कानून हिजाब के अनिवार्य पालन को सुनिश्चित करने के लिए बेहद कठोर प्रावधानों से भरा है। इसमें हिजाब का उल्लंघन करने वालों को मौत की सजा, कोड़े मारना, भारी जुर्माना, जेल, और शिक्षा व रोजगार पर प्रतिबंध जैसी सजाएं शामिल हैं। सितंबर 2023 में इस कानून को ईरान की संसद ने पारित किया था, जिसे हाल ही में गार्जियन काउंसिल ने अंतिम रूप दिया है।
मानवाधिकार अधिवक्ता शदी सद्र के अनुसार, इस कानून में न्यायपालिका को यह अधिकार दिया गया है कि वह विदेशी संगठनों या मीडिया के साथ जुड़े व्यक्तियों को 'धरती पर भ्रष्टाचार फैलाने' के आरोप में मौत की सजा दे सकती है। ईरान की इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 286 के तहत यह प्रावधान लागू किया गया है। हिजाब न पहनने या कथित 'अनुचित' पोशाक पहनने के मामलों में कोड़े मारने की सजा पहले से ही लागू थी, जिसे इस कानून में बनाए रखा गया है। यह प्रावधान खासतौर पर महिलाओं, ट्रांसजेंडर और गैर-बाइनरी व्यक्तियों को लक्षित करता है।
ईरान के इस कदम पर 140 से ज्यादा पत्रकारों और एक्टिविस्टों ने विरोध जताया है। उन्होंने इसे महिलाओं के अधिकारों पर सीधा हमला और प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है। महिला अधिकार कार्यकर्ता मसीह अलीनेजाद ने इस कानून को “महिलाओं को कुचलने और समानता की लड़ाई खत्म करने का हथियार” करार दिया। उनके शब्दों में, “यह कोई कानून नहीं, बल्कि आतंक का एक औजार है।”
ईरान के इस कानून ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है: क्या इस तरह से महिलाओं पर दमन करके ईरान खुद को "पक्का इस्लामी देश" साबित करने की कोशिश कर रहा है? अगर ईरान वाकई इस्लाम के अनुसार नहीं चल रहा, तो बाकी 56 इस्लामी देश इस मामले में मौन क्यों हैं? दुनियाभर में जब भी मुस्लिम समुदाय या इस्लाम से जुड़े मुद्दों की बात होती है, तो ये देश एकजुट होकर अपनी राय व्यक्त करते हैं। लेकिन जब बात ईरान जैसे देशों की नीतियों या आतंकी संगठनों पर होती है, तो उनकी चुप्पी क्यों रहती है?
इस्लामिक स्टेट, बोको हराम, अल कायदा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन इस्लाम का नाम लेकर खूनखराबा करते हैं। लेकिन किसी भी मुस्लिम देश ने अब तक यह फतवा क्यों नहीं जारी किया कि ये संगठन इस्लाम के खिलाफ हैं और इन्हें मुसलमान नहीं माना जाएगा? अगर ये संगठन इस्लाम के आदर्शों का पालन नहीं कर रहे, तो क्यों कोई इस्लामी देश खुलकर इन्हें गलत नहीं ठहराता?
ईरान के इस्लामी कानून और आतंकवादी संगठनों की क्रूरता एक अहम सवाल खड़ा करती है: क्या यही इस्लाम का असली चेहरा है, जो ईरान या आतंकवादी संगठन दिखा रहे हैं? अगर इस्लाम ऐसा नहीं है, तो इस्लामिक देशों को खुलकर कहना चाहिए कि ईरान या ऐसे संगठन इस्लाम के खिलाफ हैं। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है, जिनका जवाब देना जरूरी है। आखिरकार, यह तय करना होगा कि इस्लाम का असली रूप क्या है—शांति और बराबरी का संदेश देने वाला धर्म, या कट्टरता और दमन का प्रतीक?