मौत के सौदागर
मौत के सौदागर
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मलेरिया, डेंगू, स्वाइन फ्लू व अन्य घातक एवं लाईलाज वायरस से लोगो का "राम-राम सत्य" जारी .............. देवी देवता इस मृत्युलोक में आते है या नहीं हमें नहीं मालूम पर यमराज एवं उनके दूत पक्का नहीं आते ये हम विश्वाश से कह सकते है, क्योंकि यहाँ मौत के सौदागर इतनी तादाद में घूमते है की काम के बोझ से उन्हें भी समय नहीं मिल पाता और बोनस व इन्सेंटिव के लालच में अमर्जेंसी बिना सेकड़ो लोगो का एक साथ आ जाना वो भी बिना अपॉइंटमेंट के अच्छे-अच्छे के हौसले पस्त कर देता है | बीमारियो के अधिकांश संक्रमण जो खून से ट्रांसफर होने वाले वायरस व बैक्टीरिया से होते है, उनका संक्रमण दूषित सिरिंज व सुइयाँ जो अन्य मेडिकल के डिस्पोजल सामानो के साथ काम में आती है उनसे ज्यादा होता है व अधिकांश आने वाले खतरनाक वायरस के उद्भव का प्रमुख कारण भी माना जाता है | 

आप पिछले एक वर्ष का रिकॉर्ड उठा कर देख ले ये बीमारिया वही ज्यादा फैली है, जहा काम में आई सिरिंज व सुइयों का ढेर मिला है व पानी से साफ़ कर दुबारा पैक करने का गैर क़ानूनी कार्य पकड़ में आये है| दिल्ली में फैली बीमारियो व लोगो की मौत का ज्ञान पहले से ही राष्ट्रपति महोदय व इनके सचिवालाय के लोगो को था | इंडिया न्यूज़ द्वारा स्टिंग ऑपरेशन "ऑपरेशन हेल्थ मिनिस्टर" में सिरिंज के दुरूपयोग के सच का उजागर करने पर हमने लिखकर चेताया था कि मौत आपके द्वार पर पहुँच चुकी है दिल्ली कि वर्तमान सरकार जो आम आदमी पार्टी के माध्यम से आई उसके पहले करीबन 90 दिन के कार्यकाल के दौरान हम विधानसभा गए (आधिकारिक कार्य : निजी सचिव, स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली सरकार, पास नंबर:310687 Dated: 27-01 -2014 11:27:30 AM) व लिखित में दर्ज करा होने वाली मौतों का जिक्र करा | 

स्वास्थ्य मंत्री के चेंबर में गये परन्तु बाहर अधिकारियो ने रोक लिया पहले उन्होंने समझना चाहा ........... हमने समझा दिया तो मिलाने को राजी हो गये .......... बाद में मंत्री जी के पीछे दौड़े पर वो सीट से उठकर जा चुके थे हम वह भी लिखित में देकर आ गये परन्तु वे अधिकारी आज तक दौड़ ही रहे है व मंत्रियो को भी दौड़ा रहे है ........... अजब और गजब मध्यप्रदेश कि बात ही निराली है यहाँ के राजकीय वैज्ञानिक सलाहकार (केंद्रीय मंत्री का दर्ज प्राप्त) को सब पता है (3 -4 मीटिंग हो चुकी है) 25 पैसे को छोड़ अख़बार के रददी कागज की भी मोहताज सरकार के मुख्यमंत्री अविष्कार पर सरे आम जनता, मीडिया, मंत्रिमंडल व अधिकारियो के सामने खुलेआम बधाई देते है परन्तु लिखकर देने या अखबारों में उनके आधार पर छपी खबर पर ही हस्ताक्षर व सील लगाकर देने से इतनी स्याही के खर्च होने पर सरकारी घटे के ख्याल को रोते है | 

सबकुछ पता है रोज एक के बाद एक सच्च पिछले 9 वर्षो से हमेसा इंशानी लाशो के ढेर ल रहा है पर ये कोनसे भगवन की शपथ वाली ड्यूटी कर रहे है हमें पता नहीं ........... राजस्थान के मुख्यमंत्री को सबके सामने हाथ में (मुख्यमंत्री-निवास, CM-OSD(L)P-2(ATTACHED)/11/36360 Dated: 11-05-2011) देते है, वर्तमान पदासीन को साथ में अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रस्ताव देते है (Dated: 31-01-2015 Via: आधिकारिक मेल मुख्यमंत्री एवं उनके सचिवालय के सभी विभागीय प्रमुख, पत्र की कॉपी 12 सितम्बर 2014 की पोस्ट में मौजूद ) सचिवो के फ़ोन आते रहते है एक के बाद एक ................ बस हो गया ............. लाखो की सरकारी तनखाह वाला काम ........... पैट भर गया अपन बस .......... परन्तु अभी तक रोज बीमरियों के फैलने, जनता के तड़पने व इन्सानी लाशो के आने का सिलसिला जारी है ............. परन्तु पैट तो क्या दिल भी नहीं भर रहा है ......... एक रत में 50 से ज्यादा लोग मर जाये अगले चन्द दिनों में सेकड़ो का आकड़ा पार हो जाये 10 -10 जिलो में महामारी फैल जाये अपनी कुर्सी वाले ऑफिस का जिला भी शामिल हो पच्चासो कम्पनियाँ टनो में सीरिंज पानी से धोकर दुबारा बेचती पकड़ी जाये, इसका उपाय 15 दिन पहले आपके ऑफिस में रूबरू आकर बता दे (04 फरवरी 2009) ........ अर्थार्त प्रकृति / भगवान भी आखे खोलना चाहे पर पता नहीं आपको इंशानी लाशो से इतना स्नेह क्यों है ? मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन गये आपके पास एक राज्य की जगह 28 और राज्यों से लोग के मरने की खबरे आने लग गई फिर भी आपका दिल है कि ........ मानता नहीं ........ बीमारियो से बचने का उपाय आपकी जेब में पड़ा हो व लोग (जिसमे आपके बीबी बच्चे व रिश्तेदार शामिल है) आपके सामने तड़प-तड़प कर मरते जाये ........... यह सब जानकारी अधिकांश केंद्रीय मंत्रालयों के सचिवो को हो पर मुँह से एक शब्द भी न निकले इसे राष्ट्रीय और मानवीय हित में कोनसे सौदे को छुपाने कि मज़बूरी समझा जाये ......... मर मिट जायेगे, सब कुछ मिटा डालेंगे पर लोगो को जीने नहीं देंगे ........... लोकतंत्र को यु ही मजबूर तंत्र थोड़ी कहा जाने लगा है | भ्रस्टाचार के अर्थतंत्र में जितना मजबूर किया जाये सामने वाला उतने ज्यादा पैसा देकर जाता है|  

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