खुद को किया खुदीराम ने बुलंद इतना की मौत भी घबरा गई !
खुद को किया खुदीराम ने बुलंद इतना की मौत भी घबरा गई !
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महज 18 वर्ष की उम्र। ऐसा समय जब आज के युवा लक्ज़री लाईफ की डिमांड करते हैं। टैक्नोलाॅजी के फेर में उलझे रहते हैं। व्हाट्सएप, ट्विटर और फेसबुक पर व्यस्त रहते हैं। मगर ब्रिटिश राज व्यवस्था की गुलामी से घिरे भारत को स्वतंत्र करवाने के दौर में इस आयु के युवा बड़े से बड़ा साहस कर देश के लिए संघर्ष करते थे। ऐसे ही एक युवा का नाम था खुदीराम बोस। जिसने अंग्रेजी राज व्यवस्था की जड़ें उखाड़ फैंकने के लिए प्रयास किया उसका नाम था खुदी राम बोस।

उन्होंने भारतीयों पर अत्याचार करने वाले अंग्रेज अधिकारी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयत्न किया। हालांकि किंग्सफोर्ड तो बच गया मगर महिलाऐं मारी गईं। जिसे लेकर उन्होंने दुख जाहिर किया। खुदीदाम बोस का साथ प्रफुल्ल चाकी ने दिया। दरअसल खुदीराम बोस बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। वे बंगाल के मिदनापुर जिले के गांव में जन्मे थे। उनके पिता जी का नाम बाबू त्रैलोक्यनाथ थे उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। खुदीराम बोस ने कक्षा 9 वीं तक अध्ययन किया था।

दरअसल अंग्रेजों की ओर से भारतीयों पर बड़े पैमाने पर अत्याचार किए गए। इन अत्याचारों से भारतीय जनता परेशान हो गई। अब खुदीराम ने चाकी के साथ मिलकर इस अफसर किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया। ऐसे में दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर में एक धर्मशाला में ठहरे थे। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन किया। वह रात्रि में क्लब जाया करता था। तब उसके साथ सुरक्षा कम रहा करती थी।

एक दिन जब उसकी लाल बग्घी बंगले से निकली और वह क्लब के लिए जाने लगी तब खुदीराम बोस और चाकी ने एक बम, तीन पिस्तौल और 40 कारतूस से लैस होने के बाद बग्घी पर बम से हमला कर दिया। हमले के कारण बग्झघी में सवार की जान चली गई। खुदीराम और चाकी भाग निकले। चाकी ट्रेन में सवार होकर भाग निकले। मगर उन्हें ट्रेन में सवार अंग्रेेज अधिकारी ने पकड़ लिया।

खुदीराम जब एक भोजनालय में भोजन कर रहे थे उस समय उन्हें बम विस्फोट की जानकारी लोगों की चर्चा से मिली। तब उन्हें पता लगा कि विस्फोट में दो महिलाऐं मारी गई हैं। खुदीराम पूछ ही बैठे कि तो क्या किंग्सफोर्ड बच गया। तब लोगों ने खुदीराम को पकड़ लिया। खुदीराम पर मुकदमा चला और फिर उन्हें फांसी दे दी गई। मगर खुदीराम ने यही कहा कि मुझे सजा मिलने का अफसोस नहीं है अफसोस तो इतना ही है कि किंग्सफोर्ड बच गया।

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