स्वतंत्रता को स्वराज से जोड़ने वाले पहले क्रन्तिकारी थे बाल गंगाधर तिलक
स्वतंत्रता को स्वराज से जोड़ने वाले पहले क्रन्तिकारी थे बाल गंगाधर तिलक
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केशव गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक माध्यम वर्ग के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  उनके पिता गंगाधर शास्त्री संस्कृत के विख्यात पंडित थे और रत्नागिरी के स्कूल में पढ़ाते थे। उनकी माता का नाम पर्वती बाई गंगाधर था। उनके पिता के तबादले के बाद उनका परिवार परिवार पुणे आकर बस गया। 1871 में तिलक की शादी सत्यभामा से हुई थी । तिलक ने 1872 में मैट्रिक की परीक्षा पास की, 1877 में गणित से स्नातक किया और 1879 में एलएलबी की डिग्री प्राप्त की।

उन्होंने 2 जनवरी, 1880 में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की थी जिसें वह अंग्रेजी और गणित पढ़ाते थे। इस स्कूल की कामयाबी के बाद उन्होंने 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसायटी और 1885 में फर्गुसन कॉलेज की नीव रखी।  बाल गंगाधर तिलक आधुनिक भारत के मुख्या निर्माताओं में शामिल थे। सन् 1905 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और देश के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे जोश और उत्साह के साथ शामिल हुए । वे पहले शख्स थे जिन्होंने भारत के लिए पूर्ण स्वराज की वकालत की। न केवल उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ किया बल्कि स्वराज को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ दिया। 

तिलक ने ही प्रसिद्ध नारा 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा' दिया था। यह नारा देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत बना। उनको लोकमान्य की उपाधि देशवासियों के बीच उनकी लोकप्रियता की वजह से मिली। दरअसल लोकमान्य दो शब्दों से मिलकर बना है लोक और मान्य। लोक का मतलब लोग और मान्य का अर्थ है प्रिय।

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