बेटियों ने बचाई भारत की लाज.....!
बेटियों ने बचाई भारत की लाज.....!
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रियो ओलिंपिक में भारत की बेटियों ने भारत की लाज बचाई है.....यदि यह कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पहलवानी में साक्षी और बेडमिंटन में पीवी सिंधू ने कांस्य तथा रजत पदक नहीं दिलाये होते तो संभव था कि रियो में भारत का खिलाड़ियों का दल बगैर पदक प्राप्त किये या फिर ’घूम फिरकर’ ही वापस भारत लौट आता। यह तो उपर वाले की कृपा प्रसाद का परिणाम कहा जाये या फिर इन दोनों भारत की बेटियों की अथक मेहनत का परिणाम कि रियो में भारत की लाज बच गई वरना वही हाल और वही चाल.....!

हमारे देश की सरकार रियो ही नहीं अन्य कई खेल स्पर्धाओं में भी भारत के खिलाड़ियों का भारी भरकम दल भेजता रही है और इसी परंपरा को इस बार के ओलिंपिक में भी निर्वहन किया गया है। ऐसा नहीं है कि केन्द्र की सरकार या सभी राज्यों की सरकारें अपने यहां के खिलाड़ियों को पनपने का मौका नहीं देती है, मौका तो मिलता ही है वहीं लाखों करोड़ों खर्च भी किया जाता है सुविधाओं के नाम पर, परंतु बावजूद इसके देश के बाहर होने वाली खेल स्पर्धाओं में जाकर भारत के खिलाड़ियों के हाथ पैर क्यों ठंडे हो जाते है......।

क्रिकेट की यदि बात छोड़ दी जाये तो अन्य सभी खेलों में भारत का स्तर अभी भी पिछड़ा हुआ ही कहा जा सकता है। प्रारंभिक दौर में भले ही हमारे खिलाड़ी दम मार ले, परंतु बाद में परिणाम शून्य ही हो जाता है। साक्षी मलिक और पीवी सिंधू ने जो किया उसकी तारीफ जितनी की जाये, उतनी ही कम है। चुंकि भारत का नाम रियो ओलिंपिक में इन दोनों ने गौरवान्वित किया, इसलिये देश में इनका सम्मान तो होना ही था और यह हमारे देश की परंपरा भी रही है कि जिसने भी विदेश में देश का नाम गौरवान्वित किया, उसे रूपयों पैसों से लाद दिया जाता है, वास्तव में यह गौरव को बचाने वाले का सम्मान है और फिर सम्मान के तरीके कुछ भी हो सकते है। रही बात रियो ओलिंपिक की, तो इसमें हाॅकी टीम ने भी शुरूआती दौर में दमखम दिखाते हुये पदक प्राप्ति की उम्मीदों को कायम रखा, लेकिन बाद में टाॅय-टाॅय फिस्स.....।

इसी तरह अन्य खेलों में भी पुरूष ही नहीं महिला खिलाड़ियों ने भी भारत को हताश करने का ही कार्य किया। इसके अलावा पहलवान नृसिंह की तो वे डोपिंग के मामले में फंस बैठे तो वहीं योगेश्वर दत्त ने भी रही सही कसर को पूरा कर दिया, अर्थात वे भी प्रतियोगिता में हारकर बाहर हो गये। कुल मिलाकर रियो में जिस उम्मीदों से भारत के खिलाड़ियों का दल भेजा गया था, वह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी है। बावजूद इसके साक्षी और पीवी सिंधू ने देश के गौरव को कायम रखा है फिर भले ही ये दोनों कांस्य और रजत पदक लाई हो। दोनों ने नया इतिहास रचा है, इसलिये ये दोनों साधुवाद के पात्र भी है। परंतु अब हमें अपने आंचल में झांकना होगा, अपनी कमजोरियों को दूर करना होगा और उन कमजोरियों का आंकलन करना होगा, जिसके कारण हम हमेशा असफल सिद्ध होते रहे है। 

- शीतलकुमार ’अक्षय’

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