वाराणसी में पुरानी परंपराएं ने लिया नया रूप,बेटियों ने निभाया बेटो का फर्ज
वाराणसी में पुरानी परंपराएं ने लिया नया रूप,बेटियों ने निभाया बेटो का फर्ज
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वाराणसी: दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक काशी में अब सदियों पुरानी परंपराएं नया रूप लेने लगी हैं। यहां की बेटियां पिता की अर्थी को न सिर्फ बल्कि मुखाग्नि और चार कंधे भी दे रही हैं। दरअसल, काशी गोमती संयुक्‍त ग्रामीण बैंक के पूर्व डीजीएम सच्चिदानंद त्रिपाठी (65) का गुरुवार को निधन हो गया था। उन्हें कंधा देने के लिए उनकी चार बेटियां आगे आईं और सबसे बड़ी बेटी ने मुखाग्नि दी। बेटी बनकर बेटो का फ़र्ज़ निभाया|

 एक वर्ष से सच्चिदानंद गले के कैंसर से पीड़ित थे। डीएलडब्‍ल्‍यू स्थित एक निजी अस्‍पताल में उन्‍होंने आखिरी सांस ली। महमूरगंज स्थित रॉयल रेजिडेंसी अपार्टमेंट स्थित आवास से महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट तक उनकी चारों बेटियां अन्‍नपूर्णा, अर्चना, सुधा और सरोजिनी ने अर्थी को कंधा देकर बेटों का फर्ज निभाया। महाश्‍मशान पर वैदिक परंपराओं के मुताबिक, अंतिम संस्‍कार किया गया। चिता को मुखाग्नि बड़ी बेटी सरोजिनी ने दी।

परिवारवालों ने बताया है कि उन्‍होंने बेटों की तरह बेटियों की परवरिश की है| सच्चिदानंद त्रिपाठी ने वाराणसी विकास समिति से जुड़कर यातायात व्‍यवस्‍था सुधारने के अलावा भी अन्‍य सामाजिक कार्य किए। उन्‍होंने शव वाहिनी की शुरुआत कराने से लेकर आम लोगों तक उसका फायदा पहुंचाने में अहम योगदान दिया हैं। लिहाजा बेटियां भी अपना फर्ज अदा करने में पीछे नहीं रहीं। बेटियों ने अपने पुरे फ़र्ज़ किए|

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