बेटियो को दहेज की बलि न चढ़ाये
बेटियो को दहेज की बलि न चढ़ाये
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रविवार का दिन था गायत्री जो 15 साल की है अपनी गुड़िया के लिए लहंगा सिल रही है वही बरामदे मे बैठे उसके पापा पेपर पढ़ रहे है माँ रसोई घर मे खाना बनाने मे व्यस्त है गायत्री अपनी गुड़िया को दुल्हन की तरह सजा रही है गायत्री पापा, देखो मेरी गुड़िया को दुल्हन लग रही है न?  हाँ तेरी गुड़िया तो बड़ी हो गई है उसके लिए दुल्हा ढूँढना होगा। पापा आप दुल्हा ढूँढ़ दोगे? हां, मै तेरी गुड़िया के लिए श्री राम जैसा दुल्हा ढूँढ़ दूँगा। नही पापा श्री राम जैसा नही चाहिये उन्होने माता सीता को कोई सुख नही दिया उनकी अग्नी परीक्षा ली, उसके बाद प्रजा की खुशी के लिए सीता को जंगल मे भटकने के लिए छोड़ दिया, ऐसे लड़के से मै अपनी गुड़िया की शादी नही कर सकती!  ठीक है तू चिन्ता मत कर श्री कृष्ण जैसा दुल्हा ढूँढ़ दूँगा। श्री कृष्ण की तरह जो राधा से प्यार करे रूपमणी से शादी करे और गोपियो के साथ रास-लीला करे नही ऐसे लड़के से मैं अपनी गुड़िया की शादी नही कर सकती। 

 ठीक है बेटी अर्जुन की तरह धनुष धर तो चलेगा? गायत्री नही पापा,अर्जुन के जैसा भी नही चलेगा अपनी पत्नी को जुआ मे हारने वाले लड़के के हाथ मै अपनी गुड़िया का हाथ नही दे सकती! अब मै क्या करूँ तेरी गुड़िया के लिये दुल्हा ढूँढ नहीं पाया!  रहने दो पापा मै आज के भारत की बेटी हूँ, पहले मैं अपनी गुड़ियां को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाऊंगी उसे इतना गुणवान बनाऊंगी कि लड़के वाले मेरी गुड़िया का हाथ मांगने खुद आयेगे उस वक्त मेरी गुड़िया जिसको अपने काबिल समझेगी उसी से उसकी शादी होगी।  

बहुत अच्छा पापा का  ध्यान पेपर से हट गया वह सोच मे डूब गये आज बात गायत्री कि गुड़िया की हो रही है कुछ दिन बाद मेरी गुड़िया गायत्री बड़ी होगी उस वक्त कहां से दुल्हा आयेगा, जो उनकी गायत्री के काबिल होगा मेरी बेटी के कितने उच्च विचार है वह अपनी गुड़िया का हाथ कितना सोच-समझ कर लायक लड़के के हाथ मे देने की बात कर रही है और मै क्या कर रहा हू अपनी गुड़िया के लिये! वो सोच मे डूबे रहते है पापा आप क्या सोच रहे हो?  कुछ नही कुछ दिन बाद तु भी बड़ी हो जायेगी और अपने ससुराल चली जायेगी।

पापा मुझे बड़ा नही होना ससुराल नही जाना!  क्यों बेटी? हर लड़की का सपना होता है कि उसे अच्छा ससुराल मिले! होता होगा पर मुझे शादी नही करना शादी होने के बाद आप मुझे पराया कर दोगे।  नही बेटी ऐसी बात नही है। पापा मुझे याद है बुआ हमारी अपनी थी आपने और दादी ने उनकी शादी के बाद पराया कर दिया था, वो ससुराल वालो से परेशान हो कर दादी के बाद रोती थी दादी कहती बेटी तुम्हारी तकदीर मे यही लिखा था शादी तोड़ी नहीं जाती जैसे भी हो तुझे वहीं रहना होगा मायके से बेटी डोली मे विदा होती है ससुराल से अर्थी पर विदा होती है यही लड़की का भाग्य है। पापा, बेटी ऐसी बात नही है! पापा आपने भी बुआ के लिए कुछ नही किया। बेटी उस समय कि बात कुछ और थी अब सब ठीक है।

पापा कुछ नहीं बदला आपका समाज उस समय जैसा था, आज भी वैसा ही है मेरे साथ भी वही होगा और आप चुपचाप देखोगे! पापा : नहीं बेटी तुम्हारे साथ ऐसा कभी नही होगा तुम्हारे ससुराल वाले अच्छे होगे। इसकी कोई गारंटी है? आशा करता हूं, कि अच्छा ससुराल और अच्छा दुल्हा ढूँढ पाऊं, पापा मेरी थोड़ी सी अंगुली जल गई थी तो मै कितना रोई थी उन्होने तो बुआ को ही जला दिया, कितना रोई होगी इतना बोल कर सीमा भी रोने लगी! पापा पेपर फेंक कर गायत्री को गले लगा लेते है और खुद भी रोने लगते है। रोने की आवाज़ सुनकर गायत्री की मम्मी दौड़ कर आई और पूछने लगी क्या हुआ बाप-बेटी क्यो रो रहे हो?  मैने गायत्री को कहा कि तुम्हें भी ससुराल जाना होगा इस बात पर वह रो रही है। 

अभी शादी कहां हो रही है आज इतना रो रहे हो तो विदाई के समय कितना रोओगे! चल बेटी पापा तुझे चुप क्या करायेंगे ये तो खुद रो रहे है! गायत्री को लेकर उसकी मम्मी उसके कमरे में ले गये गायत्री बहुत रो रही थी, वह रोते-रोते सो गई। इधर पापा बरामदे में बैठे बेटी कि बातों से चिंतित रो रहे है, जी क्या हुआ आप दोनो इतना क्यों रो रहे थे? मेरी बहन को उसके ससुराल वालो ने जलाकर मार दिया था वो घटना गायत्री को याद है और दिल मे डर बन कर बैठ गया है वह शादी के नाम से डरती है। उस समय तो वह सिर्फ 8 साल की थी!  हां पर उसे सब याद है!  अब क्या होगा? 

उसके इस डर को धीरे- धीरे निकालना होगा आज तुम्हारे सामने अपने आप से एक वादा करता हू मैं अपनी बेटी का हाथ उसी के हाथ में दूंगा जो उसे पलकों पर बैठा कर रखेगा। इसके लिए गायत्री को गुणवती बनाना होगा ताकि ससुराल वाले उसकी कद्र करे। हां जी आप ठीक बोल रहे हो जो गलती एक बार हुई वह दुबारा नही होगी।  मैनें अपनी बहन खोयी है बेटी नही खो सकता मेरी बेटी का दुल्हा वही होगा जो उसे और उसकी भावनाओं को समझेगा चाहे वो मेरी पसंद का हो या मेरी बेटी के पसंद का। मैं अब इस समाज के डर से कुछ भी खोने के लिए तैयार नही हूँ।

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