राजनीतिक की घट्टी में पिसता दलित
राजनीतिक की घट्टी में पिसता दलित
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गुजरात के उना में गौ हत्या के अंदेशे में दलितों को पीटे जाने और फिर उनके द्वारा आत्महत्या का प्रयास करने से राजनीतिक बवाल मच गया। इस मामले ने दलित और दबंग के बीच की राजनीति को फिर सामने रखा है। यूं तो समाज में दलित और दबंग के बीच की खाई है हालांकि अब यह खाई काफी कम हो गई है और कई क्षेत्रों में तो दलित भी दबंगों से अच्छी स्थिति में हैं हां दूरस्थ क्षेत्रों में दलितों की हालत दयनीय है।

मगर उना में जो भी हुआ उसका राजनीतिक प्रभाव अधिक नज़र आया। जिस तरह से कुछ दलितों को कथिततौर पर गौ हत्या का आरोपी बना दिया गया उस तरह से तो यही लगता है कि इस घटनाक्रम को राजनीतिक रंग अधिक दिया गया है।

दरअसल कई बार दलित और दबंग के बीच समाज में जितना भेद नहीं होता उससे अधिक भेद तो राजनीतिक तौर पर दर्शा दिया जाता है। सत्ता पक्ष पर तरह तरह के आरोप लगते हैं और फिर विपक्षी नेता मौका-मुआयना करने पहुंच जाते हैं मगर उनकी कौन पूछे जिन्हें बिना किसी हाईलाईट के दलित होने के कारण मुश्किलें झेलनी पड़ी हैं। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या दलित दुल्हे के घोड़ी चढ़कर दबंग के क्षेत्र से निकलने की घटना हो या फिर गुजरात के उना में दलितों की पिटाई का मामला हो हर बार दलित केवल राजनीति का हथियार बनकर रह जाता है।

आखिरकार रोहित वेमुला के परिवार को अपना धर्म बदलकर बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर दलित की आवाज़ को सही तरह से सामने रखा गया या फिर बिना बात का शोर मचा दिया गया। सत्ता किसी की भी हो राजनीतिक की घट्टी में पिसता बेचारा दलित ही है। आखिर भारत रत्न आंबेडकर के आरक्षण के मरहम से दलितों को कोई लाभ नहीं हुआ।

'लव गडकरी'

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