'दैनिक भास्कर' के पूर्व पत्रकार ने ही खोल दी मीडिया हाउस की पोल, बताया- कैसे आए हज़ारों करोड़ ?
'दैनिक भास्कर' के पूर्व पत्रकार ने ही खोल दी मीडिया हाउस की पोल, बताया- कैसे आए हज़ारों करोड़ ?
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नई दिल्ली: आयकर विभाग ने टैक्स चोरी के आरोपों में मीडिया समूह दैनिक भास्कर के कई शहरों में स्थित दफ्तरों में छापे मारे। ये छापेमारी भोपाल, जयपुर, अहमदाबाद और कुछ अन्य शहरों पर की गई है। आयकर विभाग की इस कार्रवाई के बाद पूरा विपक्ष लामबंद हो गया और सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। अरविन्द केजरीवाल से लेकर ममता और राहुल गांधी से लेकर सुरजेवाला तक, हर कोई इसे  ‘प्रेस की आजादी पर कायरतापूर्ण हमला’ घोषित करने में पूरी ताकत से लगा हुआ है। इन सबके बीच यह देखना बेहद दिलचस्प है कि दैनिक भास्कर में काम कर चुके एक पत्रकार की इस मुद्दे पर क्या राय है? इस छापेमारी को लेकर उनका क्या कहना है?

दैनिक भास्कर में काम कर चुके एलएन शीतल ने फेसबुक के माध्यम से इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा है। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि, 'मीडिया कोई पवित्र गाय नहीं, जिसे ‘रक्षाकवच’ हासिल है! देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस – ‘भास्कर समूह’ पर IT और ED की छापेमारी को मीडिया पर हमला बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकार ने भास्कर ग्रुप के सत्ताविरोधी तेवरों से चिढ़कर उसे सबक सिखाने और अन्य अख़बारों/चैनलों को डराने के लिए यह कार्रवाई की है।' उन्होंने लिखा कि, 'ऐसा कहने वालों को मालूम होना चाहिए कि कोई भी अखबार या न्यूज चैनल ऐसी कोई ‘पवित्र गइया’ बिल्कुल नहीं, जिसे रक्षा-कवच प्राप्त है। कौन नहीं जानता कि विभिन्न अख़बार और चैनल बैनर की आड़ में तमाम तरह के ग़लत-सलत धन्धे करते हैं और अपने उन धन्धों से जुड़ी अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने के लिए सरकारों पर अड़ी-तड़ी डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। भास्कर सिरमौर है इनमें। अख़बार के नाम पर सरकारों से औने-पौने दामों में ज़मीनें हथियाना और फिर उन ज़मीनों का मनमाना इस्तेमाल करना विशेषाधिकार है इनका।'

उन्होंने आगे लिखा कि, 'बिल्डरों के साथ मिलकर फ्लैट-डुप्लेक्स बनवाने-बिकवाने और व्यापारियों से मिलकर उनके उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए अपने पाठकों को उकसाने का धत्कर्म करने में सबसे तेज गति वाला है यह समूह! मीडिया भी एक इंडस्ट्री है। तो फिर किसी अन्य इंडस्ट्री की तरह उस पर भी छापे क्यों नहीं पड़ सकते? लेकिन छापे पड़ते ही कुछ लोग चीखना-चिल्लाना शुरू कर देते हैं कि बदले की कार्रवाई हो रही है। कोई मीडिया हाउस, जो '1992 में 100 करोड़ का भी नहीं था, वह '2021 आते-आते हज़ारों करोड़ का कैसे हो गया, यह किसी से छिपा नहीं है। इसे समझने के लिए ज़्यादा ज्ञान की ज़रूरत नहीं है।' 

एलएन शीतल ने अपने पोस्ट में आगे लिखा कि, 'भास्कर सबसे ताक़तवर, सबसे बड़ा, सबसे निर्भीक और सबसे तेज रफ्तार वाला मीडिया समूह है, जैसा कि वह दावा करता है! उसकी आवाज में बहुत ज़्यादा दम है, उसकी पहुँच बहुत दूर तलक है, सरकारें उससे थर्राती हैं, ऐसा वह परोक्ष/अपरोक्ष ढंग से ध्वनित करता है!! तो फिर डर किस बात का? अगर उसने कर-चोरी नहीं की है तो वह विपक्ष के दम (?) पर संसद को हिला सकता है, महंगे से महंगे वकीलों की फ़ौज के बूते सुप्रीमकोर्ट में दमदारी से अपनी बात रख सकता है, अपने विशालतम पाठक-परिवार की ताक़त पर चुनाव नतीजों को मनमाफ़िक कर सकता है! जब वह आकाश-पाताल एक कार सकता है तो IT/ED की औकात ही क्या!!' हमने अक्सर सुना है कि, बार-बार चीख-चीखकर झूठ को दोहराने से धीरे-धीरे लोग उसपर यकीन करने लगते हैं, भास्कर गुनहगार है या निर्दोष ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन उसके पहले ही जो माहौल बनाया जा रहा है, उसे सही नहीं कहा जा सकता। 

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