प्रमोशन एवं वित्तीय मामलों को लेकर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कॉडर अधिकारियों और आईपीएस अफसरों के बीच चल रहे तनातनी बढ़ती जा रही है. सीआरपीएफ मुख्यालय ने अपने ही 12 अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है. कई दूसरे अफसरों के खिलाफ भी जांच होने की बात सामने आई है. इस कार्रवाई के पीछे यह तर्क दिया गया है कि अर्धसैनिक बलों के अफसर नियमों से परे सोशल मीडिया में अपनी बात रख रहे हैं. सीआरपीएफ के रिटायर्ड अफसरों ने इस कार्रवाई को निंदनीय बताया है.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद केंद्र सरकार कॉडर अफसरों को इनका हक नहीं दे रही है. प्रमोशन के स्तर पर ये अधिकारी 15 साल पीछे चल रहे हैं. कॉडर अफसरों को अपनी बात रखने के लिए आगे नहीं आने दिया जाता. इस मामले में बातचीत के लिए जब बुलाया जाता है, तो वहां गृह मंत्रालय यह शर्त रख देता है कि बैठक में एडीजी रैंक से नीचे के अधिकारी न हों.
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जानिए क्या है 'आईपीएस बनाम कॉडर अफसर' विवाद
विभिन्न अर्धसैनिक बलों के करीब दस हजार कॉडर अफसर अपने प्रमोशन को लेकर परेशान हैं. इनमें सहायक कमांडेंट से लेकर आईजी रैंक तक के अधिकारी शामिल हैं. जिस तरह से केंद्र सरकार की दूसरी संगठित सेवाओं में एक तय समय के बाद रैंक या फिर उसके समकक्ष वेतन मिलता है, वैसा सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों को नहीं मिल पा रहा है. करीब बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कॉडर अफसर उस वक्त कमांडेंट के पद तक पहुंच पाता है. कॉडर अफसर 33 साल की नौकरी के बाद बड़ी मुश्किल से आईजी बनता है.
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