क्राॅप बर्निंग: आखिर खुद ही क्यों जला रहे धरती रूपी अपना घर!
क्राॅप बर्निंग: आखिर खुद ही क्यों जला रहे धरती रूपी अपना घर!
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मौजूदा समय में आपने खेतों के आसपास से गुजरते समय, आसमान में दूर दूर तक काला धुंआ उठता देखा होगा। कभी बस में से गुजरते समय अचानक खेतों के पास से आपको गर्मी का अधिक अनुभव भी होता होगा। भला वो क्यों यदि आपने खेतों से उठने वाली आग की लपटें देखी हों तो सारा मांजरा आपकी समझ में आ सकेगा। दरअसल फसलों के पकने के बाद जब उनकी कटाई की जाती है तो फिर खेतों में बचे अवशेष जड़ से उखाड़ने की बजाय कृषक उसे जला देते हैं।

ऐसा कर उन्हें बड़ी राहत मिलती है उन्हें लगता है कि खेतों को राख के तौर पर काफी पौष्टिक पदार्थ मिला है मगर वे अपने ही हाथों अपने घर में आग लगा रहे हैं हां अंतर यह है कि उन्हें इस चिंगारी की जानकारी नहीं है। क्राॅप बर्निंग एक ऐसा इश्यु है जिससे दिल्ली ही नहीं कई क्षेत्रों के लोग परेशान रहे हैं। जब दिल्ली में सर्द मौसम के लगभग समाप्त होने के दौरान कोहरे की परत छाई हुई नज़र आई तो सरकारें,एनजीटी जैसे संस्थान और न्यायालय तक गंभीर हो गए।

मगर क्राॅप बर्निंग का यह खेल भारत के छोटे - छोटे देहाती कस्बों तक भी चल रहा है। ज़रा सोचिए कि यहां किसान फसलों के अवशेष जला रहे हैं और वहां ओज़ोन लेयर पर बुरा प्रभाव हो रहा है। आसमान में काला धुंआ उठ रहा है और कार्बनिक गैसों के ही साथ ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ाने वाले यौगिकों का प्रतिशत बढ़ रहा है। किसान अपने खेतों को आसानी से खाली होने का एक सामान्य तरीका क्राॅप बर्निंग को मानता है लेकिन इससे उसी का नुकसान हो रहा है।

क्या आपने गौर किया है कि फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाला नेचुरल तत्व तक नष्ट हो जाता है। यदि इसे काटकर खेतों की मिट्थ्टी में ही दबा दिया जाए तो मिट्टो को पौषक तत्व मिलते है और एसे में किसानों को जैविक खाद के तौर पर एक बढ़िया विकल्प मिल जाता है लेकिन किसान इसे जला देते हैं और परिणाम स्वरूप वायु प्रदूषण की मुश्किल सामने  आती है। 

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