अंतरधार्मिक विवाह को लव जिहाद मानने से कोर्ट का इन्कार
अंतरधार्मिक विवाह को लव जिहाद मानने से कोर्ट का इन्कार
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केरल। केरल उच्च न्यायालय के एक निर्णय से लव जिहाद के मामले में नया मोड़ आ गया है। दरअसल वी चिदंबरेश और सतीश निनान की न्यायिक खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि, सभी तरह के अंतरधार्मिक विवाह लव जिहाद की श्रेणी में नहीं आते हैं। इस मामले में कहा गया है कि, बीते वर्ष न्यायालय में लगभग 3 बेंचेस के सामने लव जिहाद का मामला सामने आया था। इन मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल किया था कि, न्यायालय किस तरह दो वयस्क लोगों के विवाह को समाप्त कर सकते हैं।

यदि ऐसा होता है तो फिर हर शादी लव जिहाद ही है। गौरतलब है कि न्यायालय ने जिस मामले में अपना निर्णय सुनाया है वह श्रुति मेलेदाथ और अनीस हमीद से संबंधित है। श्रुति और अनीस एक दूसरे से प्रेम करते हैं, जब श्रुति ने अनीस के साथ शादी करने की बात अपने घर पर बताई तो उसके पिता ने अनीस के धर्म को कारण बताया और शादी करने से इन्कार कर दिया।

मगर मई वर्ष 2017 में श्रुति और अनीस भागकर हरियाणा के सोनीपत पहुंच गए। केरल पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। इसके बाद दोनों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। श्रृति के परिजन दोनों को एरनाकुलम के उडायमपेरूर के योग केंद्र में ले गए यहां पर परिजन उन्हें लेकर इसलिए आए जिससे वे फिर से धर्म परिवर्तन कर हिंदू बन सकें। मगर श्रुति ने अपना धर्म नहीं बदला था।

श्रुति ने न्यायालय में कहा कि योग केंद्र में उसे तरह - तरह की यातनाऐं दी जाती थीं। जब श्रुति योग केंद्र के अधिकारियों की बात नहीं मानती तो उनके साथ मारपीट की जाती थी। अनीस के वकील ने आरोप लगाया कि श्रुति का प्रेग्नेंसी टेस्ट भी करवाया गया। पुलिस ने इस मामले में प्रकरण दर्ज कर योग केंद्र में छापा मारा और वहां के अधिकारियों को पकड़ लिया।

इसके बाद यह जानकारी मिली कि राज्य में धर्म परिवर्तन केंद्र और पुनः धर्मपरिवर्तन केंद्र अस्तित्व में हैं। इन केंद्रों को बंद करवाने की मांग की जा रही है। कहा जा रहा है कि संविधान देश के विभिन्न नागरिकों को अपनी इच्छा से धर्म का चुनाव करने का अधिकार देता है।

न्यायालय ने कहा कि अंतरधार्मिक विवाह को बिना कारण धार्मिक रंग देना ठीक नहीं है, यह मामला प्रेम से जुड़ा हुआ था, यहां जिहाद जैसा कुछ नहीं था। न्यायालय ने कहा कि श्रृति और अनीस को लेकर यह जानकारी सामने आई है कि दोनों अपने - अपने धर्म के साथ ही रहना चाहते थे। इस मामले में जिहाद जैसा कुछ भी नहीं था। इसलिए इसे लव जिहाद नहीं कहा जा सकता है।

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