क्या कोरोना संक्रमण का बिना मुकाबला करे पटरी पर लौट पाएगी अर्थव्यवस्था ?
क्या कोरोना संक्रमण का बिना मुकाबला करे पटरी पर लौट पाएगी अर्थव्यवस्था ?
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देश में कमाई की कड़ियां अर्थव्यवस्था की लड़ियां बनती है. असंख्य कमाई की लड़ियों से बुने जाल वाली अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत होती है कि वह राष्ट्र और राष्ट्रवासियों के बहुमुखी कल्याण को सुनिश्चित कर सके. उद्योग और कारोबार चलते हैं तो लोगों को वेतन मिलता है. उस वेतन से वह कुछ बुरे दौर के लिए बचत में रखता है. शेष दैनिक जीवन के लिए जरूरी चीजों में खर्च करता है. उसके द्वारा खर्च किए जाने वाली रकम से अन्य क्षेत्र की कमाई होती है. कुछ पैसा वह अपने किसान पिता के पास भेजता है जिससे उन्नत किस्म के बीज, खाद और तकनीकी की मदद से बंपर पैदावार करके वे देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस क्रम में भी उनकी आय सृजित होती है. कमाई और खर्च के इसी अंतर्संबंधों के बुने जाल से अर्थव्यवस्था विकास करती है और लोगों का धीरे-धीरे ही सही, स्थायी कल्याण सुनिश्चित होता है. कोरोना वायरस ने कमाई की इन कड़ियों को कुतर दिया है. अर्थव्यवस्था में कमाई का जाल कट गया है. बढ़ते संक्रमण के बीच लॉकडाउन खोलने के चलते जनजीवन पटरी पर आता दिख रहा है, लेकिन कमाई की कड़ियों को जोड़ने की बड़ी चुनौती बनी हुई है. कामकाज के तौरतरीके बदल चुके हैं. उद्योग अपनी पूरी क्षमता के साथ उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. तमाम क्षेत्रों में मांग ठप हो गई है तो कृषि और इससे जुड़े कई क्षेत्रों में आपूर्ति पुराने स्तर की बनी हुई है, लेकिन दैनिक उपभोग वाली उन चीजों की मांग कम होने के कारण उत्पादकों को वाजिब कीमत नहीं मिल पा रहा है.

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बदलते दौर के साथ समय का चक्र परिवर्तनशील है. हर बुरे दौर के बाद अच्छे दौर का आना तय होता है. मई महीने में ट्रैक्टर की बिक्री अनुमान से बेहतर रही है. उर्वरकों की खरीद जैसे तमाम संकेतकों के आधार पर विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की रिकवरी का माध्यम कृषि क्षेत्र ही बनेगा क्योंकि जिन कुछ क्षेत्रों पर कोरोना का सबसे कम प्रतिकूल असर पड़ा है, उनमें कृषि भी शामिल है. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए, कमाई की कड़ियों को फिर से जोड़ने और कोरोना से न्यूनतम प्रभावित क्षेत्रों का पूरी क्षमता से उत्पादन लेने के साथ अन्य प्रभावित क्षेत्रों में कामकाज सुचारू करने की बड़ी चुनौती है. तमाम क्षेत्रों में देश के आत्मनिर्भर बनने की घड़ी आन पड़ी है. ऐसे में कमाई की इन कड़ियों को मजबूत बनाकर देश, समाज और निजी स्तर पर बेहतरी की बहाली की संभावनाओं की पड़ताल एक बड़ा मुद्दा है.

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