मेरी कोशिश है की हंगामा होते रहना चाहिए!
मेरी कोशिश है की हंगामा होते रहना चाहिए!
Share:

शोर, शोर और फिर एक बार शोर जी हां बीते कई दिनों से संसद में लगातार हंगामे का ही शोर सुनाई दे रहा है। ऐसे में महत्वपूर्ण बिल और विधेयक पेश होने से वंचित रह गए। हालात ये रहे कि संसद में केवल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मसले पर कांग्रेस अड़ी रही और उन्होंने सदन नहीं चलने दिया। आखिर क्या यह कांग्रेस की कोई रणनीति थी या फिर सदन न चलने देने का राजनीतिक प्रयास। जो भी हो इस सत्र में भी सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले GST जैसे महत्वपूर्ण बिल सदन के पटल पर लाए जाने से वंचित रहे गए और फिर जनता का मसला हवा हो गया। आखिर भारत की जनता अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को क्यों सदन में भेजती है। 

क्या केवल हंगामा खड़ा करना ही सभी का मकसद रह गया है। यदि ऐसा है तो फिर इस विधायी निकाय पर ही सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं। बीते दौर में देश के कई भागों में अतिवृष्टि से जनहानि हुई। इस दौरान फसलें भी नष्ट हो गईं लेकिन इस ओर संसद में कोई गंभीर सवाल नहीं उठाया गया। हंगामे के चलते मानसून सत्र में किसी भी क्षेत्र के लिए राहत पैकेज जारी नहीं किया गया। 

कांग्रेस के युवराज जो अपनी पदयात्राओं से देश के किसानों का दर्द सामने लाते हैं वे भी राहत पैकेज के मसले पर मौन रहे और व्यर्थ का शोर करते रहे। जनता अपने प्रतिनिधियों से यह सवाल कर रही है कि आखिर हंगामा क्यों, किस उद्देश्य के लिए हंगामा किया जा रहा है। क्या केवल विदेश मंत्री सुषमा के इस्तीफे से भ्रष्टाचार की कालिख मिट जाएगी। यदि विरोध किया भी जाना है तो हंगामा किस लिए बरपाया जा रहा है। 

ऐसे कई मसले हैं जिन पर विरोध किया जा सकता है मगर मर्यादित विरोध की कई बार मांग रहती है। सांसदों के इस आचरण पर कई बार सवाल उठ चुके हैं लेकिन फिर भी संसद में गतिरोध बंद नहीं होता। संसद में हर बार किसी भी सत्र में बस हंगामा किया जाता है। अब तो संसदीय राजनीति में हंगामा एक परंपरा बन गई है। विपक्ष तब तक असरदार नहीं माना जाता जब तक वह वाॅक आउट न कर दे। 

ऐसे में देश का इतना पुराना राजनीतिक दल विपक्ष में बैठकर अपनी भूमिका का निर्वहन कैसे नहीं कर सकता है। चाहे काला धन मसला हो, भूमि अधिग्रहण बिल को पेश करने का मामला हो या फिर ललित मोदी गेट कांड के साथ मध्यप्रदेश में उपजा व्यापमं. घोटाला हर कहीं कांग्रेस द्वारा हंगामे की राजनीति की जाती है। ऐसे में संसद का महत्वपूर्ण सदन बिना किसी महत्वपूर्ण मसौदे को पारित किए ही समाप्त हो जाता है।

सांसद अपने वेतन और भत्ते बढ़ाने, अपने हित संबंधित किसी भी विधेयक को पारित करवाने के लिए एकजुट हो जाते हैं लेकिन देश से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर वे विवाद में ही समय गंवा देते हैं। कई क्षेत्रों की गंभीर समस्याऐं प्रश्नकाल के दौरान बहस से छूट जाती हैं तो दूसरी ओर आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ सेन्य कार्रवाईयों पर बयानबाजी करने तक ही सदन की कार्रवाई सिमट जाती है। 

इन मसलों के स्थायी समाधान पर कोई चर्चा नहीं होती। आखिर संसद किसके लिए चलती है। यह देश का सर्वोच्च संवैधानिक सदन है। यदि इस सदन में ही सांसद हंगामा करते रहेंगे। अध्यक्ष की आसंदी तक आकर खड़े हो जाऐंगे तो फिर देश की परेशानियों और विकास के मसलों को अमलीजामा कैसे पहनाया जा सकेगा। यही नहीं विकास की रफ्तार संसद के गलियारों से होकर ही जाती है। इस सदन में अब तक GST पर बहस नहीं हो सकी है ऐसे में राजस्व का एक बड़ा प्रबंधन गड़बड़ा गया है। यदि संसदीय कार्रवाई गरिमापूर्ण नहीं होगी तो देश हित से जुड़े मसलों पर ठीक से अमल नहीं हो सकेगा। 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -