'हिंदुओं को कुतुब मीनार-ताजमहल सौंपे भारत सरकार', कांग्रेस नेता की डिमांड
'हिंदुओं को कुतुब मीनार-ताजमहल सौंपे भारत सरकार', कांग्रेस नेता की डिमांड
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वाराणसी: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावों पर कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम ने बयान दिया है। जी दरअसल उनका कहना है कि ज्ञानवापी का मुद्दा आस्था और भारत की जन भावनाओं से जुड़ा है और न्यायालय में विचाराधीन है लेकिन सवाल है कि शिवलिंग को अब तक क्यों छिपाया गया और किसने छिपाया? जी दरअसल हाल ही में कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम ने कहा कि, 'प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है, न्यायपालिका का जो भी आदेश होगा उसे सभी को मानना होगा।' इसके अलावा प्रमोद कृष्णम ने यह भी कहा कि, 'कुतुब मीनार और ताजमहल, भारत सरकार के अधीन है और किसी धर्म से जुड़ा हुए नहीं है, ऐसे में सरकार को चाहिए कि ताजमहल और कुतुब मीनार, हिंदुओं को सौंप दें, यह विषय भारत सरकार का है लेकिन हम राष्ट्र और देश के साथ हैं।'

इसी के साथ उन्होंने अयोध्या में चल रहे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के विरोध पर कहा, 'बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह और राज ठाकरे एक थाली के चट्टे-बट्टे हैं।' इस दौरान प्रमोद कृष्णम के साथ मौजूद रहे कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि राम मंदिर की तरह ज्ञानवापी मामले पर भी कोर्ट फैसला लेगा। वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक कांग्रेस के अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने बनारस की निचली अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे में कथित शिवलिंग मिलने के बाद उस स्थान को सील करने के आदेश को षड्यंत्र बताया है। जी दरअसल शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि ज़िला अदालत का सर्वे का आदेश ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ़ था।

शाहनवाज आलम का दावा है कि मस्जिद में वज़ू करने के लिए बने पुराने फव्वारे के बीच में लगे पत्थर, जो कालांतर में टूट गया था, को ही टूटा हुआ शिवलिंग बताकर अफवाह फैलायी जा रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के क़रीब सभी पुरानी और बड़ी मस्जिदों में इस तरह के फव्वारे और उसके बीच में ऐसे ही पत्थर लगे हुए हैं। जी दरअसल शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सवाल उठता है कि क्या 1937 और 1942 में ये कथित शिवलिंग जिसे आज सर्वे टीम खोज निकालने का दावा कर रही है, वहां मौजूद नहीं था। और अगर तब नहीं था तो आज कैसे मिल गया? साल 1937 और साल 1942 के मुकदमों में किसी शिवलिंग की मौजूदगी अदालत को नहीं दिखी थी। आज सर्वे के नाम पर शिवलिंग मिलने की अफवाह फैलाकर 15 अगस्त 1947 की स्थिति को बदलने की गैर विधिक कोशिश की जा रही है।

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