क्या सितारा इमेज पर भी लागू हो पाएगी कम्युनिटी सर्विस
क्या सितारा इमेज पर भी लागू हो पाएगी कम्युनिटी सर्विस
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अभी हाल ही में केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने रोड ट्रांसपोर्ट एवं सेफ्टी बिल 2015 में कम्युनिटी सर्विस को भी शामिल किया है और सरकार इस पर जल्द ही 5 वां ड्राफ्ट भी लाने जा रही है. इस सर्विस पर आगे बात करने से पहले आइये संक्षिप्त में कम्युनिटी सर्विस के बारे में जान लेते है. इस सर्विस में यातायात के नियमों का उलंघन करने पर आर्थिक जुर्माने के साथ सश्रम जुर्माना भी लगाया जाता है और ये सश्रम जुर्माना कुछ भी हो सकता है. जैसे चौराहे पर झाड़ू लगाना या यातायात व्यवस्था संभालना. नए नियम के अनुसार यह सजा 15 से 300 घंटों तक की हो सकती है. इस सर्विस को लागू करने के पीछे सरकार का तर्क है कि आर्थिक जुर्माना देकर तो कोई भी छुट जाता है लेकिन सश्रम जुर्माने से लोगों में यातायात नियम तोड़ने के प्रति भय पैदा होगा.

अमीर वर्ग और उच्च वर्ग के लोग जो आसानी से आर्थिक दंड देकर छुट जाते थे वो अब ऐसा नहीं कर सकेंगे, पर एक सवाल जो शायद काफी लोगों के जेहन के होगा वो ये है कि क्या सरकार सितारा व धनाड्य वर्ग पर भी ये सर्विस उतनी ही शिद्दत से लागू होगी जितनी निचले और माध्यम वर्ग पर. या फिर ये सिर्फ गरीब और मध्यम वर्ग से पैसा ऐठने और झाड़ू लगवाने का हथकंडा बनकर रह जाएगा. सर्विस को लागू करते हुए सरकार ने कहा कि ये सर्विस पहले से कई देश में लागू है और 2012 में इस सर्विस के तहत मशहूर एक्ट्रेस व माँडल लिंडसे को 125 घंटो की कम्युनिटी सर्विस की सजा भुगतनी पड़ी थी चलो ये तो हुई अमेरिका की बात पर क्या हमारी सरकार भी वह निष्पक्षता ला पाएगी जो इस सर्विस के लिए आवश्यक है.

हमारे देश में सितारा इमेज बहुत ज्यादा प्रभाव रखती है. अभी हाल ही में सलमान को सजा न होने पर रोड़ों पर उनके समर्थकों ने दिवाली जैसा माहौल कर दिया था. आपको ज्ञात होगा की सलमान का हिट एंड रन केस 2002 का है और वह अभी तक आजाद घूम रहे है. याद हो की इस हादसे में 1 आदमी की जान चली गई थी और 4 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे पर बात शायद ये थी की उनमे से कोई भी बड़े घराने का नहीं था. वो सब ही गरीब लोग थे और मजदूरी करके अपना पेट पालते थे.

इस केस में कुछ लोगों ने तो ये तर्क तक दे डाला कि सलमान कई NGO चलाते है जहाँ वो गरीब से गरीब लोगों की मदद करते है इसलिए उन्हें माफ़ कर दिया जाए. अब ये तो 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत का क्रियांवयन जैसा है. ऐसे कई उदाहरण हमें रोजाना देखने को मिलते है ऐसे कई ख्याति प्राप्त लोग है जिनके आगे हमारी दण्डात्मक प्रणाली बोनी सी लगने लगती है. अब आप मेरा इशारा समझ ही गए होंगे. पर ऐसे में क्या ये सर्विस गरीब व् अमीर या शक्तिशाली और निशक्त के बीच की खाई को बांट पायेगी.

मुझे इस सर्विस पर कोई शक नहीं है, बस शक है तो इसके क्रियावयन पर. वो क्या है न की एक आम आदमी तो झाड़ू लगा ही लेगा पर क्या हमारे भारतीय फिल्म दर्शक जो अपने पसंदीदा कलाकार के दीवाने है और उन्हें ही कॉपी करते है या किसी नेता के चमचे को इन्हें भगवान की तरह पूजते है, उन्हें इनका झाड़ू लगाना स्वीकार होगा. बस यही जानना दिलचस्प होगा.

पं. सुदर्शन शर्मा

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