नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने अपना एक बड़ा फैसला सुनाते हुए न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक कहा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण में सरकार की भूमिका समाप्त हो गई है। इस आदेश के बाद अब जजों की नियुक्ति पुराने तरीके से ही होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि आयोग सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीश हेतु किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति नहीं करेगा जिसके नाम पर दो सदस्यों ने सहमति नहीं जताई हो।
याचिकाकर्ताओं ने आयोग द्वारा इस मामले में कार्य किए जाने पर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार बढ़ने की बात कही। उनके द्वारा कहा गया कि कानून मंत्री की आयोग में उपस्थिति भ्रष्टाचार ही बढ़ा सकती है। भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट न्यायपालिका के माध्यम से जजों के निर्णयों को प्रभावित कर सकती है।
इस दौरान यह मांग की गई कि नेताओं को जजों की नियुक्ति में सम्मिलित न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने काॅलेजियम सिस्टम को जारी रखने की बात कही। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश समेत 4 दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश भी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होते हैं। कोलेजियम द्वारा सर्वोच्च और उच्च न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए सिफारिश करता था और यह अनुशंसा भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को भेजी जाती थी।
राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही जजों की नियुक्ति होती थी। न्यायालय ने इस मामले को बड़ी बेंच में भेजने की बात भी खारिज कर दी। उल्लेखनीय है कि न्यायिक आयोग का गठन भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में किया जाना था। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य होते। केंद्रीय कानून मंत्री को इस आयोग के पदेन सदस्य के तौर पर नियुक्ति किया जाना प्रस्तावित था। भारत के दो प्रबुद्ध नागरिकों को इसका सदस्य बनाया जाता। प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश द्वारा इनकी नियुक्ति की जानी थी मगर इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार दे दिया गया।