दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन ने अब भारत का लोहा मान लिया है। हाल ही मे आए अधिकारी आंकड़ों मे चीन की 2015 चौथी तिमाही तक वृद्धि 6.9 प्रतिशत पर आ कर अटक चुकी है। भारत के समकक्ष रख कर देखे तो चीन केवल एक हाथ की दूरी पर ही है। पर दो सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्थाओ के बीच यह अंतर अरबों- खरबो का होता है।
चीन ने साल दर साल अपनी बढ़त खोई ही है। वही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेशको को भी भारत का प्यार और दुलार कुछ ज़्यादा ही मिला है। 2011 से 2015 तक चीन का आर्थिक विकार 9.5 से अब 6.9 तक आ चुका है वही भारत ने अपनी बढ़त बनाए रखने मे सफलता प्राप्त की है। पर पड़ोसी देश और एक बड़ी आर्थिकव्यवस्ता का इस तरह कथित तौर पर गिरना बहुत ही बड़ी चिंता का विषय है, क्योकि खामियाजा भारत को भी भुगतना पड सकता है।
चीन के बाज़ार 15 महीनो के निचले स्तर पर है वही 6.9 प्रतिशत पर आर्थिक गति पिछले 25 सालो मे सबसे कम है। चीन के बाज़ार, एक बड़े पेमाने पर, विश्व और भारत मे लौह अयस्क, तेल, तांबा, लक्जरी और उपभोक्ता वस्तुओं आदि की कीमतों पर व्यापक असर डालता है। चीन के विकास के कारण ही भारत मे लोहे के दामो का गिरना एक वजह बताई जा रही थी।
चीन की घरेलू मुद्रा के गिरने से भारत को सबसे पहले झटका लगता है। चीन के आधिकारिक अकड़ो की अच्छी बात यह है कि चीन की आर्थिक विकास दर कम है पर स्थिर है। चीन अपने आर्थिक विकास के 7 प्रतिशत के अनुमान के आस पास ही कही है। अच्छी बात तो यह भी है कि फ़्रांस की तरह चीन ने आर्थिक आपातकाल की स्थिति का जुमला नहीं खोला है। पूरे विश्व मे ही आर्थिक संकट के हालत है। भारत का ही निर्यात 15% घाटा है। कुवैत जैसे देश 2011 मे 9.6% से अभी -1.6 तक आ सकते है तो वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
भारत के लिए अकड़ो मे ही सही पर अपनी विकास दर को बनाए रखना बहुत ही बड़ी चुनोती है।
'डॉ सुनील केलोत्रा'