धमाकों में खोया बच्चों का प्यारा  'काबुलीवाला'
धमाकों में खोया बच्चों का प्यारा 'काबुलीवाला'
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काबुल: अफ़ग़ानिस्तान के ताज़ा हालातों को देखते हुए लगता है कि, काबुल का वह पुराना काबुलीवाला जिसे रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी कलम से सजीव किया था, वो जिन्दा है भी या नहीं. क्योंकि अब अफ़ग़ानिस्तान बिलकुल बदल चुका है, यहां अब खुशहाली बामुश्किल ही नजर आती हैं.  आज यहां कोई नहीं जानता कब मौत किस भयानक रूप में सामने आ जाए.

आपको बता दें कि, गए शुक्रवार को भी यहां आतंकी हमला हुआ था, इस दौरान अफगान सैनिकों ने करीब 12 आतंकियों को मौत के घाट उतारा. जबकि शनिवार खबर मिलने तक यह मुठभेड़ जारी थी. यह महज कोई कहानी या कोई किस्सा नहीं हैं, बल्कि मौजूदा अफगान की ऐसी स्थिति पिछले चार दशकों से चली आ रही हैं.

आपको बता दें कि, अफ़ग़ानिस्तान, भारत का बेहद करीबी है, काबुल एक ऐसी जगह जहां आज भी भारत और यहां के लोगों को बहुत इज्जत और सम्मान से देखा जाता हैं. यहीं का रहने वाला खान अब्दुल गफ्फार काबुलीवाला हिंदुस्तान के बंटवारे के बिल्कुल खिलाफ था. जिस काबुल को भारत कभी काजू, बादाम के लिए जानता था, आज वह काबुल हथियारों के लिए जाना जा रहा हैं. जहाँ कभी काबुलीवाला जैसे नेक लोग थे वहां,  आज हथियारबंद जवान घूमते रहते हैं . 

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