"एक ऐसा भी बचपन था"
जो 1965 -1980 के बीच जन्में है, हमें एक विशेष आशीर्वाद प्राप्त हैँ
और ऐसा भी नही कि हमें किसी भी आधुनिक संसाधनों से परहेज है
लेकिन.
- हमें कभी भी जानवरों की तरह किताबों को बोझ की तरह ढो कर स्कूल नही ले जाना पड़ा ।
- हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी अपने प्रोग्राम आगे पीछे नही करने पड़ते थे !
- स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक गली की सड़क पर गली मोहल्ले में खेलते थे।
- हम अपने सभी सच्चे और पक्के दोस्तों के साथ खेलते थे, न की आज की तरह नेट दोस्तों के साथ ।
- जब भी हम प्यासे होते थे तो सीधे नल से पानी पी लिया करते थे और वो पानी भी साफ़ शुद्ध होता था और हमने कभी बॉटल का पानी नही ढूँढा ।
- हम कभी भी चार लोग गन्ने का जूस आपस में बाँट कर के भी बीमार नही पड़े । * हम एक प्लेट मिठाई और रोज़ चावल खाकर भी कभी मोटे नही हुए ।
- नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कुछ नही होता था।
- हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ भी अलग ( प्रोटीन - विटामिन) नही लेना पड़ता था ।
- हम कभी कभी अपने खिलोने खुद बना कर भी खेलते थे । अपने दोस्तों के साथ खिलोने आपस में बॉट लेते थे ।
- हम ज्यादातर अपने माता पिता के साथ या उनके पास ही रहे । या कभी भी किसी रिश्तेदार के यहाँ भी बिना किसी झिझक के रह लेते थे ।
- हम अक्सर 2-4 भाई बहन एक जैसे या एक दूसरे के कपड़े पहनना शान समझते थे, तब हममे एक सामान वाली कोई बात नही थी और उसमे भी मजे करते थे ।
- हम बहुत कम ही डॉक्टर के पास जाते थे, और कभी जरुरत पड़ती थी तब डॉक्टर साहब हमारे पास आ जाया करते थे ।
- हमारे पास तब न तो मोबाइल, dvd , Xboxes, PC, Internet, chatting, क्योंकि हमारे पास सच्चे दोस्त थे ।
- हम दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और खेलने के साथ साथ खाने -पीने के मजे लेते थे। हमे कभी उन्हें कॉल करके उनके यहाँ जाना नहीं पड़ा ।
- शायद हम एक अदभुद और सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि हम वो अंतिम पीढ़ी हैं जो की अपने माता- पिता की सुनते हैं और साथ ही साथ पहले जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं ।
अब वो ज़माना शायद कभी लोट कर नहीं आ सकता ।