चाणक्य नीति - भाग 2
चाणक्य नीति - भाग 2
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१. एक लालची आदमी को वस्तु भेंट कर संतुष्ट करें। एक कठोर आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करें। एक मूर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करें। एक विद्वान आदमी को सच बोलकर संतुष्ट करें।

२. इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में करें, यानी अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण करें।

३ मुर्गे से हे चार बाते सीख सकते हैं पहली- सही समय पर उठें। दूसरी- नीडर बने तीसरी- संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करें और चौथी बात अपने पुरुषार्थ से अपना रोजगार प्राप्त करें।

४ श्वान से ये चार बात सीख सकते हैं पहली- बहुत भूख हो पर खाने को कुछ ना मिले या कम मिले तो भी संतोष करें। दूसरी- गहरी नींद में हो तो भी तुरंत क्षण में उठ जाएं। तीसरी- अपने स्वामी के प्रति ईमानदारी रखें। और चौथी बात निडर रहें।

५ फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा की और फैलती है पर चरित्र संपन्न सत्पुरुष व्यक्ती की अच्छाई हर दिशा में फैलती है |

६ एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है कि व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो। एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो। एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है कि बिना शिष्य वाला हो। एक बुरी पत्नी होने से बेहतर है कि बिना पत्नी वाला हो।

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