नई दिल्ली : लगता है भूमि अधिग्रहण बिल एक बार फिर सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। भूमि अधिग्रहण बिल में आए बदलाव को लेकर विपक्ष द्वारा विरोध जताया जा रहा है। इस दौरान प्रमुखरूप से विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा अन्य दलों को साथ लेकर विरोध की राजनीति करने का मन बनाया गया है। इस दौरान माना जा रहा है कि सरकार के लिए मानसून सत्र में काफी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
मिली जानकारी के अनुसार भूमि अधिग्रहण बिल में परिवर्तन के मसले पर विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है। इस मसले पर राजग सरकार ने अपनी मुश्किलें हल करने के लिए कानून का मसला राज्यों पर छोड़ दिया है। माना जा रहा है कि इस तरह का निर्णय सरकार द्वारा विपक्ष के दबाव और राज्यसभा में बदलाव के लिए आवश्यक समर्थन न मिलने के कारण किया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार भूमि अधिग्रहण बिल पर चर्चा करने के लिए नीति आयोग की बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित की गई। जिसमें सरकार के मंत्रियों ने उपस्थितों को संबोधित किया और इस बिल से जुड़े सभी पहलूओं की जानकारी दी। मामले में कहा गया है कि राज्य स्तरीय कानूनों का सुझाव दिया जा सकता है तो दूसरी ओर केंद्र को मंजूरी दिए जाने की बात भी की जा रही है। इस बैठक में करीब 16 मुख्यमंत्री शामिल हुए।
इस दौरान उत्तरप्रदेश ओडिशा पश्चिम बंगाल तमिलनाडु और आंध्रदप्रदेश के मुख्यमंत्री भी इस बैठक में नहीं पहुंचे। जिसके कारण केंद्र को इस मसले पर निर्णय लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ा। बैठक में अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि राज्यों को इस मसले पर संबंधित कानून बनाने की अनुमति दी जाना चाहिए।
केंद्र सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर राज्यों को कानून बनाने की अनुमति दी जाना चाहिए। जिससे राज्य अपने अनुसार इस मामले में निर्णय ले सकें। जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य मंत्रियों ने इस मसले पर निर्णय लिया कि राज्य स्तरीय कानूनों को बनाए जाने को लेकर राज्यों को छूट दी जा सकती है।