अतुल्य भारत की समृद्धि के मायने उसका हैरिटेज और पर्यटन
अतुल्य भारत की समृद्धि के मायने उसका हैरिटेज और पर्यटन
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सदियों से ही भारत दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। कुछ लोग इसकी समृद्धि, भवनों और यहां की विशालता से प्रभावित होकर साम्राज्य विस्तार के लिए इस ओर चले आए लेकिन इसके बाद वे यहीं के होकर रह गए। यहां की संस्कृति से अपनी संस्कृति का मेल किया और फिर यहां राज करते हुए उन्होंने यहां भवन, ईमारतें, तालाब आदि बनवाए यही नहीं इस दौरान शिक्षण संस्थान आदि भी निर्मित हुए। इन संस्कृतियों ने अपने अनुसार इस देश का विकास और विस्तार भी किया मगर भारत का मूल कहा जाने वाले आर्यों का विकास भी वैसा ही होता रहा।

आर्यों के बाद अनार्यों का प्रवेश इसके बाद द्रविड़ और अन्य लोगों का प्रवेश और फिर तुर्क, मुगल, पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिशों का यहां प्रवेश किया जाना और यहां के राजतंत्र को प्रभावित करना इसकी संस्कृति को समृद्ध बनाता रहा। दरअसल भारत के मूल में वेदों में समाहित और ऋषियों के तपो बल से संचित वह ज्ञान था जो साक्षात् ईश्वर की वाणि से निकला बताया जाता है।

इसकी पुर्नरचना कुछ इस तरह से की गई जिससे भारत सांस्कृतिक रूप से संपन्न नज़र आए। ऐसा देश जहां अनेक राजाओं और नवाबों ने शासन किया वहां कई तरह के निर्माण भी किए गए। कुछ निर्माण लोककल्याण के लिए तो कुछ स्मृतियों के लिए हुए। मगर इन निर्माणों ने भारत के संपन्न इतिहास को प्रदर्शित किया। यही इमारतें भारत की मजबूती की कहानी कहती हैं। इन्हें हैरीटेज के तौर पर देखा जाता है।

यही हैरीटेज भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है मगर इसी के साथ अनेकता में एकता के दर्शन भी करवाता है। किसी मुस्लिम शासक ने अपनी बेगम की याद में खूबसूरत ताजमहल का निर्माण किया तो दूसरी ओर उसी ताजमहल को निहारने बड़ी संख्या में हिंदू औ अन्य धर्मावलंबी यहां पहुंचते हैं। दिल्ली की कुतुब मीनार तुर्क शासकों के आगमन की कहानी कहती है तो नालंदा विश्वविद्यालय के साथ बिहार के बोधि मठ उस काल का दर्शन करवाते हैं।

आज भी यहां भगवान बुद्ध की मौजूदगी का अहसास होता है। मध्यप्रदेश में भगवान शिव की भस्मारती साक्षात् ईश्वरत्व का धरा पर अवतरण का संकेत देती है। अंकपात में लगे वृक्षों के नीचे ऐसा लगता है जैस भगवान श्रीकृष्ण किसी कोने से निकलकर सामने खड़े होने वाले हैं। मांडव गढ़ निहारने पर ऐसा लगता है जैसे रानीरूपमती अपने प्रेमी बाजबहादुर को ही झरोखे से निहार रही हो।

संपन्न किले, मठ और मस्जिदों व मकबरों के बीच पुर्तगालियों और ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए चर्चों में आस्था की झलक नज़र आती है। ध्यान, शांति, संयम, पवित्रता की बात करने वाले भारतीय समाज का दर्शन और रंग कहीं कहीं आकर वेस्टर्न नज़र आने लगता है और यहां आकर ऐसा लगता है कि हम पश्चिम के किसी आधुनिक शहर में पहुंच गए हैं मगर इन सभी के बीच हर किसी के दिल से बस यही निकल पड़ता है अतुल्य भारत, समृद्ध भारत। दरअसल 27 सितंबर का दिन संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा विश्व पर्यटन दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

पर्यटन एक ऐसा माध्यम से जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मन को सुकून देता है। इस माध्यम से व्यक्ति एतिहासिक पृष्ठभूमि को जान पाता है तो दूसरी ओर खुद को समृद्ध और विस्तृत करने का उसे अवसर मिलता है। यही नहीं इस माध्मय से बड़ी संख्या में कई लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है। ऐसे में यह विकास का एक बड़ा माध्यम है। 

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