बस्सी VS केजरीवाल : क्या किसी साजिश का नतीजा तो नहीं!
बस्सी VS केजरीवाल : क्या किसी साजिश का नतीजा तो नहीं!
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जब मैंने एक महीने पहले दिल्ली में यह चर्चा सुनी कि आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार गिराने की साजिश चल रही है, तो मैंने खुद से जिरह की, नहीं, यह संभव नहीं। लेकिन, आप पर दिल्ली पुलिस आयुक्त बी.एस.बस्सी के बढ़ रहे आक्रामक रुख तथा इससे जुड़ी राजनीति से मैं यह सोचने लगा कि हो सकता है मैं गलत हूं। सामान्यत: पुलिस अधिकारी अपने काम के नियमों से बंधे होते हैं, लेकिन बस्सी ऐसे बयान दे रहे हैं जो निर्वाचित सरकार पर राजनीतिक हमले की तरह लग रहा है। मुझे याद नहीं आता कि पिछली बार कब किसी राज्य के पुलिस प्रमुख ने ऐसे बयान दिए हों। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में पुलिस कर्मियों को लेकर इस्तेमाल किए गए शब्द से बच सकते थे। मुझे लगता है कि जो लोग मेरी तरह दिल्ली में पले-बढ़े हैं, उन्हें पता है कि ऐसे शब्द यहां के शब्दकोष का हिस्सा बन चुके हैं, जो कि नस्लीय तथा नकारात्मक अर्थ वाले होते हैं। लेकिन यह बेहद उत्सुकता पैदा करने वाला है कि बस्सी लंबे-चौड़े साक्षात्कार के सिर्फ एक शब्द पर ही क्यों बयान दे रहे हैं। जब वह खुद कहते हैं कि पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे अपने खिलाफ कहे गए शब्दों को नजरअंदाज करें, फिर क्यों उन्होंने ऐसा कहा?

इसके अतिरिक्त, उस वक्त किसी को क्यों आश्चर्य नहीं हुआ, जब दिल्ली पुलिस का एक कांस्टेबल दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ अदालत गया। यह भी इस देश में पहली बार हुआ है। बस्सी ने तब हद कर दी, जब उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अंदर लाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा और उन्होंने इसकी वजह निहित स्वार्थ को बताया, जैसा अनुभव गोवा तथा पुडुचेरी जैसे राज्यों का रहा है। यह बेहद अजीब है कि वह पुलिस सेवा में होने पर सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर दलील दे रहे हैं। कहीं यह बस्सी का निहित स्वार्थ तो नहीं, जहां उन्हें सिर्फ छोटे राज्यों में ही राजनीतिज्ञों का निहित स्वार्थ नजर आ रहा है? ऐसी स्थिति में वह तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, अांध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के बारे में क्या ख्याल रखते हैं। तब उन्हें क्यों नहीं लगता कि हर राज्य की पुलिस को केंद्र के नियंत्रण में होना चाहिए। अगर गोवा में कोई निहित स्वार्थ जुड़ा है, तो पूर्व मुख्यमंत्री और अब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी इसका हिस्सा रहे हैं?

क्या दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने निहित स्वार्थ को त्याग दिया। इसी तरह, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी क्या नरेंद्र मोदी का निहित स्वार्थ जुड़ा हुआ था। यह बिल्कुल तर्कहीन बात है। मैं ऐसे कई वरिष्ठ अधिकारियों को जानता हूं, जिन्होंने संवेदनशील मुद्दे निपटाए हैं। उन्होंने दोस्त होने के नाते मुझसे कई बातें साझा की है। उनकी खुद की राय बस्सी से मिलती-जुलती है, लेकिन मुझे याद नहीं कि कभी किसी पुलिस अधिकारी ने सरकार के कामकाज को लेकर कोई राय जाहिर की हो। बस्सी ने अपने हालिया साक्षात्कार में आप सरकार को यह सुझाव दिया है कि उन्हें कहां क्या करना चाहिए। मैं खुद उस हालात के अच्छे या बुरे होने का अंदाजा नहीं लगा सकता, अगर तमिलनाडु के पुलिस प्रमुख मुख्यमंत्री जयललिता को शासन को लेकर सार्वजनिक रूप से राय दें।

वस्तुत: बस्सी का रवैया यह जाहिर करता है कि क्यों दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अंदर होना चाहिए, चाहे वहां आप, भाजपा या कांग्रेस की सरकार हो। बस्सी के बयान ने उनको लेकर रहस्य पैदा किया है, कहीं उनका बयान केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच छिड़ी जंग से तो जुड़ा नहीं। कहीं, उन्हें यह भरोसा तो नहीं कि वह मुख्यमंत्री के खिलाफ जाएंगे, तो इससे उन्हें कोई खतरा नहीं? उनके एक कनिष्ठ सहयोगी ने भी एक बार कहा कि केजरीवाल पुलिस में कत्र्तव्यहीनता को भड़का रहे हैं। वास्तव में कुछ न कुछ गड़बड़ है और यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। (आईएएनएस)

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