मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर किसी महिला की जान को खतरा हो तो कोई पंजीकृत डॉक्टर अदालत की इजाजत के बगैर भी 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ का गर्भपात करा सकता है। जस्टिस ए एस ओका और एम एस सोनक की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि हालांकि, जब 20 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हो और महिला को लगता हो कि इसे जारी रखने से उसके या उसके भ्रूण के मानसिक/शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकता है तो हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी होगी।
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को 20 हफ्ते से ज्यादा का वक़्त पार कर जाने के बाद अपना गर्भपात कराने की इच्छा रखने वाली गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए जिला स्तर पर तीन माह के भीतर चिकित्सा बोर्ड का गठन करने का भी निर्देश दिया है। चिकित्सीय गर्भपात (एमटीपी) अधिनियम के प्रावधानों के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ का गर्भपात नहीं कराया जा सकता।
पीठ ने अपने आदेश में जिक्र किया था कि हाई कोर्ट में गर्भपात कराने की मांग को लेकर महिलाओं की याचिकाओं की तादाद में इजाफा हुआ है। गर्भपात के लिए इन महिलाओं ने भ्रूण के विकास में असमान्यता या गर्भ के रहने से मानसिक/शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम होने का हवाला दिया है। जिसपर सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा है कि हाई कोर्ट आपात स्थिति में महिलाओं को गर्भपात कराने की इजाजत दे सकता है, भले ही इसकी अवधि 20 सप्ताह से ज्यादा हो गई हो।
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